पदपादाकुलक 16 मात्राएँ परशुराम संवाद
पदपादाकुलक 16 मात्राएँ
मोटनक
प्रारंभ में एक गुरू अवश्य।
अंत में लघु लघु गुरू।
परशुराम संवाद
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हो टूक टूक शिव चाप पड़ा।
भृगुवंशी देखें नैन गड़ा ।
बोले फिर फरसा तान जता ।
किसने तोड़ा रे जनक बता।
है कौन यहाँ जो मौत बुला।
यम राज निमंत्रण भेज खुला।
क्या कहें जनक चुपचाप खड़े।
मुनि नैन आग बरसाय अड़े।।
धर धीर सहज ही भाव लिये ।
कर जोड़ विनम्र झुकाव लिये ।
कह दिया राम बलवान वही
हे नाथ आपका सेवक ही।
जो चाप गर्व को मेंट सके ।
जो घनी पीर लख के न जके।
पर वो अपराधी खास बना।
मुनि कहे मुझे संताप घना ।
पुर के नर नारी कांप रहे ।
बचने अपने सिर ढांप रहे ।।
सुन वचन क्रोध में और भरे।
बोले अक्षम्य अपराध करे ।
मैं उसका काटूं शीश अभी।
मन होगा मेरा शांत तभी।।
कह लखन धैर्य क्यों छूट गया।
धनु सड़ा छुआ प्रभु टूट गया।।
मत आप चाप का शोक करो ।
आ रहा व्यर्थ रिस रोक करो ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश