“पथ प्रिय रघुनंदन का”
“जिस पथ पर मैं चलता हूं,
वह पथ रागी हो प्रदर्शन का।
जिस पथ का अनुरागी हूं,
वह पथ भावी हो दर्शन का।
जिस पथ का उच्चारण करूं,
वह पथ हो स्वावलंबन का।
जिस पथ का अनुयायी हूं,
वह प्रीति प्रिय हो रघुनंदन का।।
अपराध मुक्त हो जन मानस,
हे नाथ! तन का कष्ट हरो।
मिलें सुख समृद्धि सबको,
काज अमानवता का नष्ट करो।
जहां सद्भभावनाएं पलती हैं ,
वहां सुख समृद्धि मिलती हैं ,
वह जगह स्वर्ण सा सुंदर है,
जहां न्याय सम्पदा प्यारी लगती है।।