पथ तेरे सुमन बिछाये हैं
यादों की गुलकारी से आ, वो मन मेरा महकाये हैं।
भूल न जाना आना प्रियतम, पथ तेरे सुमन बिछाये हैं।।
उदधि से गहरा नेह मेरा,
आकाश भी छू न पाये है।
मंजुल छवि उर अनंग उतार,
यादों के दीप जलाये हैं।
छेड़ी मैंने मधुर रागिनी
प्रेम पयोनिधि बरसाये हैं,
रजनीगंधा भी महक रही
प्रियतम तेरे ही साये हैं।
जीवन के इन क्षीण क्षणों में, वो चंद्रकिरण से आये हैं।
भूल न जाना आना प्रियतम, पथ तेरे सुमन बिछाये हैं।।
निशा कौमुदी झलमला रही
टिमटिम तारे चमकाये हैं।
मैं पथ तेरा तकती-फिरती
सुध-बुध तन ने बिसराये हैं।
गुन-गुन भौंरे कहते मुझसे,
क्यों कलियों सी शरमाये है।
कैसे देखूँगी तुझको प्रिय,
पल-पल ये मन सकुचाये है।
कब होंगे दीदार सजनवा, अब नैनन नीर बहाये हैं।
भूल न जाना आना प्रियतम, पथ तेरे सुमन बिछाये हैं।।
विलुप्त हुई चेतना मेरी,
विरहन को रास न आये है।
बंद दृगों से दर्शन करती,
चहुँ ओर तुम्हारे साये हैं।
सुख देती ये गहन यामिनी,
ज्यों दिव्य दीपक जलाये हैं।
मेरे निमीलित दृगंचल पर,
ज्यों अधर तुम्हारे आये हैं।
शाम सुहानी बीत न जाये, ये सोच जिया घबराये है।
भूल न जाना आना प्रियतम, पथ तेरे सुमन बिछाये हैं।।
रचयिता–
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’