पथिक न पथ पर ठहरे तब तक ।।
पथिक न पथ पर ठहरे तब तक ।।
सूरज की ज्वाला भी दहके, थक कर डगमग पद भी बहके ।
रुके न पथपर-थमे न पथपर , शैलो की ठोकर भी सह के।।
रुके न पग के छालों से ही, घाव नहीं हो गहरे जब तक ।
पथिक न पथ पर ठहरे तब तक ।।
शोलों का श्रृंगार किये हो , हँसकर बाधा पार किये हो।
भले निरंकुश मौसम ने भी, भीषण अत्याचार किये हो ।।
झुके न गर्दिश में, हो जाएं, दिन भी और सुनहरे जब तक ।
पथिक न पथ पर ठहरे तब तक ।।
संसृतियों से पार चले वह, क्षणिक न दुःख से हार चले वह ।।
कांटे चुने, और फूलों को, हंसकर ठोकर मार चले वह ।।
जिद्दी हो वह, रुके न कोई-तूफानों के पहरे जब तक ।।
पथिक न पथ पर ठहरे तब तक ।।
—— कवि आनंद