पथभ्रष्ट हो जाओ, पर लक्ष्यभ्रष्ट नहीं !
वे भारत भ्रमण सहित
कई देशों की
यात्रा भी किये।
‘शेखर : एक जीवनी’
उनकी प्रसिद्धि प्राप्त
उपन्यास है।
‘आँगन के पार द्वार’,
‘कितनी नावों में कितनी बार’ आदि
काव्य-कृतियाँ हैं।
उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’
और ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ भी
प्राप्त हुए।
उनका कहना है-
पथभ्रष्ट हो जाओ,
कोई बात नहीं;
किंतु
लक्ष्यभ्रष्ट मत होओ !