पत्र
मित्रों,
नमस्कार
सावधान! सावधान!सावधान!
“कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा
चौबीस घंटे हमे डराना! घंटा उखाड़ लेगा कोई भारत का। ग्यारह सौ वर्षो तक भारत केवल अपनों के स्वार्थ और पाप का भोग भोग रहा है। भारत वासी कभी गुलाम नहीं रहे। गुलाम हुए जो कायर थे और उसी कायरता का पाठ पढ़ाकर कुछ और को कायर बना दिया। जिस संस्कृत में अन्याय के खिलाफ पशु पक्षी लड़े हो, वहा का मानव न संपूर्ण गुलाम होगा न ही कायर। हमारे वहा तो शिखंडी भी योद्धाओं में शुमार थे।
हमें ऐसे मशरूम की तरह बढ़ते संगठनों , व्यक्तियों और विचारों से सावधान रहना होगा। ये ऐसे जालिम लोग है, जिन्होंने आजादी के बाद आजाद, भगत, विश्मिल, सुभाष, बाल, पाल और लाल आदि के पूर्वजों को नहीं पूछा। ये सब त्रेता के दरिद्र हैं और आजकल सगठन बनाकर अपना पेट पालने और जीने का धंधा बना लिया है। इनका पेट तो देश की निजता और अस्मिता बेचकर भी नहीं भरा है।
धर्म, जाति और भाषा के नाम पर हजारों ठग समाज में घूम रहे है, जो खुद चरित्रहीन और मक्कार लोग हैं। परंतु खुद को नेता और समाजसेवी होने का प्रपंच करते रहते है और हम एक समुदाय के रूप में विछिन्न किया है। उसी विच्छिन्नता का फायदा उठाकर खुद को नेता और मसीहा प्रचारित करने में लगे हुए हैं।
हम एक गांव/शहर के लोग प्रकृति प्रदत्त सभी सुविधाएं सम रूप में पाते हैं, परंतु एक दूसरे के प्रति इतना विक्षोभ कहां से आया। कृपया सोचें, क्या हमारा समाज हजार कमियों के बाद भी इतना खराब था? नही, शायद बिल्कुल नहीं। हम एक समुदाय के रूप में जीवित और पोषित होते थे और मानव विकास की यह यात्रा अनवरत चल रही थी, क्योंकि उसका अपना चरित्र था।
हमें लौटना होगा, अगर हम गांव गांव घर घर में कोर्ट, जेल, वृद्धाश्रम, मयखाना, कोठे नहीं चाहते तो हमें सामुदायिक रूप से हम जागृत होना होगा और यही हमारा उद्देश्य है। समाज में घूम रहे हरमखोरों और व्यभिचारियों के जाल में मत फसे चाहे वे किसी रूप में आएं।
परंतु क्या हम ऐसा करने में सफल हो पाएंगे?
आप आज और भविष्य के परिपेक्ष में कैसे देखते है, बताएं?
यह एक विमर्श है!
जय हिंद