*पत्रिका समीक्षा*
पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: धर्मपथ
प्रकाशन की तिथि: सितंबर 2023
प्रकाशक: थियोसोफिकल सोसायटी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन
संपादक: डॉ शिवकुमार पांडेय
मोबाइल 79 0 5515803
सह संपादक: प्रीति तिवारी
मोबाइल 83 1 8900 811
संपर्क: उमाशंकर पांडेय
मोबाइल 9451 99 3 170
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समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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52 पृष्ठ की धर्मपथ पत्रिका का यह 51 वॉं अंक दिव्य प्रेम को समर्पित है। न केवल मुख पृष्ठ पर राधा और कृष्ण का सुंदर प्रेम से आपूरित चित्र है अपितु भीतर के पृष्ठ भी कहीं न कहीं थियोसोफी के अंतर्गत विश्व में सर्वत्र प्रेम का प्रचार करने के भाव से आप्लावित हैं।
पहला लेख थियोसोफी महात्माओं के दृष्टिकोण से सामाजिक एवं राजनीतिक सुधार शीर्षक से शिवकुमार पांडेय का है। इसमें इस प्रश्न पर विचार किया गया है कि थियोस्फी को अथवा उसके सदस्यों को सामाजिक और राजनीतिक सुधार के क्रियाकलापों में किस प्रकार से और किस हद तक संलग्न होना चाहिए ? इस दिशा में लेखक का यह कथन आकर्षक और महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक थियोसॉफिस्ट को चाहिए कि अपनी शक्ति और बुद्धि के अनुसार गरीबों की स्थिति सुधारने के उद्देश्य से सामाजिक प्रयत्न में सहायता अवश्य करें। ( पृष्ठ 6)
राजनीतिक और सामाजिक धरातल पर कार्य करते समय अनेक बार कार्यकर्ताओं को धर्म से अंतर्विरोध महसूस होता है। इस दुविधा का अंत लेखक ने धर्म की वास्तविक परिभाषा प्रदान करते हुए इस प्रकार दिया है-” धर्म हमें मानव जीवन के महान सिद्धांत उपलब्ध कराता है पर यदि उन्हें प्रसन्नता, पवित्रता और अनुशासन पूर्वक अपनाया न जाए तो जीवन भयानक उलझे हुए दुखों, गरीबी और कुरूपता से बॅंध जाता है।( पृष्ठ आठ और नौ)
इस प्रकार थियोसॉफिस्ट धर्म के मूल को आत्मसात करते हुए सामाजिक और राजनीतिक धरातल पर किस प्रकार आगे बढ़ सकते हैं, लेख मार्गदर्शन प्रदान करता है।
जलालुद्दीन रूमी की रचनाएं और उनका दर्शन शीर्षक से श्याम सिंह गौतम का लेख अध्यात्म प्रेमियों के लिए एक प्रकाश स्रोत की तरह कहा जा सकता है। जलालुद्दीन रूमी फारसी के महान आध्यात्मिक कवि हुए हैं। रूमी सूफी विचार के ऐसे संत हैं, जिनके प्रति विश्व मानवता की आस्था सब तरह के धर्म, जाति और राष्ट्रों की सीमाओं से परे देखी जा सकती है। जलालुद्दीन रूमी के विराट व्यक्तित्व को लेखक ने अपने लेख में प्रस्तुत किया है। रूमी की रचनाओं में फारसी के दोहे, रूबाइयॉं तथा गजलें हैं। उनके कुछ पत्रों के संग्रह भी हैं, जो उन्होंने लोगों को लिखे थे। इसके अलावा उनके उपदेश भी हैं । कुछ उपदेश शिष्यों ने बाद में तैयार किए थे। इन सब से गद्य और पद्य दोनों विधाओं में रूमी की अच्छी पकड़ प्रकट होती है।
रूमी प्रेम के कवि हैं। पश्चिम में उनकी कविताओं के प्रशंसक और प्रचारक शाहराम शिवा को उद्धृत करते हुए लेखक ने लिखा है कि ” रूमी का जीवन एक सच्चा साक्षी है कि किसी भी धर्म या पृष्ठभूमि के लोग एक दूसरे के साथ शांतिपूर्वक रह सकते हैं और लगातार हो रही शत्रुता और घृणा की परिस्थितियों को समाप्त करके विश्व शांति और समरसता स्थापित कर सकते हैं।( प्रष्ठ 23 और 24)
रूमी का दार्शनिक चिंतन विकासवाद के सिद्धांत पर आधारित है। वह जीव के विकास की प्रक्रिया के निरंतर बढ़ते रहने में विश्वास करते हैं। देवत्व से भी आगे बढ़कर वह यह मानते हैं कि एक दिन हम उसके साथ मिल जाएंगे, जिससे बिछड़ कर हम आए हैं। लेखक श्याम सिंह गौतम के शब्दों में ” **जहां से आए हैं उससे एक होकर आनंद में प्रवेश की एक अंतर्निहित उत्कंठा है जिसे रूमी ने प्रेम कहा है। पशु वर्ग से मानव में विकास इस प्रक्रिया का एक चरण है। इस प्रक्रिया का एक विशेष लक्ष्य है ईश्वर की प्राप्ति। रूमी के लिए ईश्वर ही समस्त अस्तित्व का आधार और उसका गंतव्य है।”* (पृष्ठ 20)
रूमी की एक कविता जो हिंदी में लेखक ने अपने लेख के मध्य दी है, उसे उद्धृत करने से रूमी के दार्शनिक काव्य सौंदर्य को समझने में पाठकों को मदद मिलेगी। कविता इस प्रकार है:-
मैं जब मिट्टी और पाषाण में मरा तो वृक्ष हो गया/ जब वृक्ष में मरा तो पशु के रूप में खड़ा हुआ/ जब मैं पशु के रूप में मरा तो मैं मनुष्य था/ मैं क्यों डरूं? मरने से मैं छोटा कब हुआ?/ एक बार फिर मैं मनुष्य के रूप में मरूंगा/ पवित्र देवों के साथ उड़ने के लिए/ किंतु उस देवत्व से भी हमें आगे जाना होगा/ ईश्वर के अतिरिक्त सभी का विनाश होना होगा/ जब मैं अपनी देव-आत्मा का त्याग करूंगा/ तो मैं क्या बनुॅंगा किसी मन ने नहीं जाना है/ ओह! अस्तित्व हीनता के लिए, मुझे न जीने दो/ यह घोषणा है जो एक बंसी की ध्वनि करती है/ उसके लिए जो वापस जा रहा है”( पृष्ठ 21 और 22)
लेखक ने संयोगवश यह भी बताया है कि रूमी एक संगीतज्ञ भी थे तथा उन्हें बांसुरी बहुत प्रिय थी। संभवतः इसीलिए उपरोक्त कविता में बांसुरी की ध्वनि ईश्वर में विलीन होने की प्रक्रिया के प्रतीक के रूप में प्रयोग की गई है।
उमाशंकर पांडे का लेख विश्व बंधुत्व हमारा धर्म विचार प्रधान शैली में विश्व बंधुत्व के भाव को समेटे हुए हैं। इसका आशय लेखक ने सब मनुष्यों को अपने से अलग न देखने के भाव के रूप में ग्रहण किया है। बंधुत्व इसी से प्रकट होता है। लेखक ने द सीक्रेट डॉक्ट्रिन का संदर्भ देते हुए बताया है कि ” जब गुरु शिष्य से पूछते हैं कि वह क्या देखता है तो शिष्य का उत्तर आता है कि वह एक लौ तथा उसमें बिना पृथक हुए अनगिनत चिंगारियां चमकते हुए देखता है और यह कि उसके स्वयं के अंदर यह चिंगारी-प्रकाश बंधु मनुष्यों में जलते प्रकाश से किसी भी तरह भिन्न नहीं है।” ( पृष्ठ 30)
लेखक ने यह बताया है कि ” जब तक मनुष्य स्वयं को जीवात्मा के बजाय शरीर मानता है, तब तक उसे बंधुत्व का बोध नहीं होता।” ( प्रष्ठ 33)
आजकल मनुष्य और मनुष्य के बीच की दूरी अनेक कारण से बढ़ती चली जा रही है। विश्व बंधुत्व के सही अर्थ समझाने से परस्पर प्रेम के भाव को जागृत करने में इस प्रकार के लेख सहयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
पत्रिका के अंत में विभिन्न थियोसोफिकल सोसायटी लॉजों में होने वाली गतिविधियों की जानकारियां दी गई हैं । कवर के अंतिम पृष्ठ पर भुवाली कैंप के सुंदर चित्र वर्ष 2023 के दिए गए हैं। छपाई आकर्षक है।