*पत्रिका का नाम : इंडियन थियोसॉफिस्ट*
पत्रिका का नाम : इंडियन थियोसॉफिस्ट
अंक : मार्च 2023
संपादक : प्रदीप एच. गोहिल
अनुवादक : श्याम सिंह गौतम
प्रकाशक : थियोसोफिकल सोसायटी, कमच्छा, वाराणसी 221010,उ.प्र.,भारत
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समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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इंडियन थियोसॉफिस्ट का मार्च 2023 अंक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अध्यात्म के विभिन्न पक्षों की गहराइयों में प्रवेश करने के लिए पाठकों को आकृष्ट करता है।
सबसे पहला लेख “एक पग आगे” प्रदीप एच. गोहिल का है । आप थियोसोफिकल सोसायटी के भारतीय अनुभाग के अध्यक्ष हैं। ‘भक्ति’ की परिभाषा अपने लेख में आपने बताई। आपका कथन है कि चेतना और प्रेम समानार्थी हैं। इसलिए प्रेम का अनंत महासागर ही विशुद्ध चेतना है । जब हम इस अनंत महासागर के बारे में चिंतन करते हैं, तो मन में जो भावना उत्पन्न होती है, वही ‘भक्ति’ है।
भक्ति के चार रूप अपने बताए हैं । इन सब से बढ़कर जो आपका कथन निष्कर्ष रूप में सामने आता है, वह विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है । आप लिखते हैं -“भक्ति की यात्रा में कोई गंतव्य नहीं होता है । यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।”
इस तरह भक्ति अंतिम सत्य को पाने के लिए किए जाने वाले प्रयास का नाम तो हो सकती है, लेकिन किसी वस्तु विशेष को प्राप्त करने तक इसे सीमित नहीं रखा जा सकता । लेख चिंतन के नए झरोखे खोलने वाला है ।
टिम बॉयड ने “पूर्ण का चुनाव” नामक लेख लिखा है तथा प्रश्न किया है कि जब हम पूर्णता की बात करते हैं तो हमारा अर्थ क्या होता है ? वह आगे बतलाते हैं कि पूर्णता एक वैश्विक चेतना है । जबकि हम गलती यह करते हैं कि इसे जाति, संप्रदाय, धर्म, लिंग और राष्ट्रों के संकीर्ण विचारों में विभाजित कर देते हैं । इस तरह हम पूर्णता को खो देते हैं ।
कुछ अच्छे प्रयोगों के बारे में भी लेख बताता है । प्रकृति के साथ हमारा संपर्क हमें अहिंसा और शांति प्रदान करता है -एक अध्ययन का हवाला देते हुए लेख में बताया गया है ।
“अगर घर की खिड़की से एक पेड़ भी दिखाई पड़ जाए तो उसका प्रभाव पारिवारिक हिंसा पर पड़ता है।” वह लिखते हैं कि “प्रकृति हील (घाव भरने का काम) करती है और थकान को दूर करती है । ”
हरियाली और अध्यात्म के परस्पर संबंधों पर भी इस प्रकार के अध्ययन प्रकाश डालते हैं।
पर्वतों के शिखर पर भी कुछ महान चेतनाऍं निवास करती हैं । इनका उल्लेख भी लेख में आता है । तात्पर्य यही है कि प्रकृति से हमें पूर्णता की दिशा में प्रेरणा मिलती है।
राष्ट्रीय वक्ता और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड फेडरेशन के अध्यक्ष यू. एस. पांडेय का लेख “अध्यात्म, आध्यात्मिकता और आध्यात्मिक” चिंतन की दृष्टि से बहुत गूढ़ है। इसमें लेखक ने आध्यात्मिक चेतना का अभिप्राय सब प्रकार के अलगाव से अलग रहकर मानवता की अभेद चेतना के साथ अपने को जोड़ने के कार्य के साथ माना है । लेखक का निष्कर्ष यह है कि थिओसफी के ज्ञान के प्रकाश में ध्यान और समाधि से मनुष्य वास्तविकता की दिशा के निकट जाता है और इस प्रकार परिवर्तित हो जाता है ।
अच्छे विचारशील लेखों को इंडियन थियोसॉफिस्ट उपलब्ध करा रहा है, यह इसकी विशेषता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के समाचार इंडियन थियोसॉफिस्ट अच्छे-खासे विस्तार के साथ प्रकाशित करता रहा है। इस बार भी यह प्रवृत्ति सराहनीय है।