” पत्राचार और विचारों का आदान -प्रदान मित्रता की कड़ी है “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हमने इन आधुनिक उपकरणों से क्षितिज के छोर को छू लिया ..सम्पूर्ण विश्व हमारी मुठ्ठियों में सिमट गया ..पलक झपकते ही हम सबों से जुड़ जाते हैं ! कुछ नए मित्र दस्तक देने लगते हैं …हम भी किन्हीं किन्हीं के दहलीजों पर कदम रखते हैं ! सबसे बड़ी उपलब्धियों का एहसास तब होता है जब पुराने मित्र अचानक मिल जाते हैं ! समय बदल जाता है ..स्थान बदल जाते हैं …लोगों के रंग बदल जाते हैं ..ढंग बदल जाते हैं ….शक्ल सूरत भी बदल जाते हैं ..पर वे पुरानी स्मृतियाँ ..यादें ..वो बीते हुए लम्हों की शाम कभी नहीं विलुप्त होतीं ! जब हम इन यंत्रों के माध्यम से मिलते हैं तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता ! सारी मनोकामना हमलोगों की पूरी हो जाती है ! हमें याद आता है वह मंज़र जब हम पत्राचार करते थे ! कभी ‘पोस्ट कार्ड ‘ ..कभी ‘अन्तर्देशीय’ …और ‘लिफाफा ‘ के माध्यम से लोगों को पत्र लिखते थे ! पत्र लिखना….पढाई का वह मापदंड होता था ..जिससे हमारी साहित्य निखरती थी ..भाषा अलंकृत होते थे ..हम बहुत कुछ सीखते थे ! इन प्रक्रिया का संचालन हमारे डाकघरों से हुआ करता था ! अब हमने तो छलांग लगाई है ! इन सारी प्रक्रियों के भाग्य विधाता हमारे इन्टरनेट बन गये हैं ! और हमारी मानसिकता ही मानो संकीर्ण हो चली है ! हम कुछ लिखना ही नहीं चाहते ! गूगल ने ‘लाइक’…’लव’ ….हाहा ‘ ….वो …सेड…..एंग्री और ना जाने कितने परमाणु बमों से हमें अलंकृत किया है ! कोई कितना भी जत्न से प्यार भरा आज भी ख़त लिखता है ..हम अपने शस्त्रागार से उपरोक्त परमाणु ही छोड़ते है ! इन परमाणुओं का प्रयोग भी हमें करना है साथ साथ पत्र लिखने की भी प्रवृतिओं को अमली जमा पहनना है ! फेसबुक के पन्नों से जुड़ने के बाद हमें निर्देश मिलता है …’कुछ लिखें ……….”और जो कोई प्यार और अनुराग से आपको पत्र लिखते हैं …जबाब तो देना दूर की बात ..या तो हम अपना ‘अंगूठा ‘ दिखा देते हैं ..या अपने शस्त्रागार से ‘लाइक’…’लव’ ….हाहा ‘ ….वो …सेड…..एंग्री से प्रहार करने लगते हैं ! अधिकांशतः लोग शायद पढ़ते भी नहीं हैं ! बस छद्म युध्यों का यह युग लगता है आ गया ! पत्राचार का रूप भले ही बदल जाये ..पर यह प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं हो सकती ! हरेक व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति अपनी भाषा में ही सहज लगती है ! भाषा के बंधनों में सिमटना श्रेयकर नहीं तथापि विभिन्य भाषाओँ को सीखना एक गर्व की बात है ! हमें पढना है और लिखना भी है …पत्राचार ही हमें लोगों से जोड़कर रखा था …रखा है ..और जोड़कर रखेगा !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज
दुमका
झारखण्ड
८१४१०१