Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Mar 2022 · 2 min read

” पत्राचार और विचारों का आदान -प्रदान मित्रता की कड़ी है “

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
=================================
हमने इन आधुनिक उपकरणों से क्षितिज के छोर को छू लिया ..सम्पूर्ण विश्व हमारी मुठ्ठियों में सिमट गया ..पलक झपकते ही हम सबों से जुड़ जाते हैं ! कुछ नए मित्र दस्तक देने लगते हैं …हम भी किन्हीं किन्हीं के दहलीजों पर कदम रखते हैं ! सबसे बड़ी उपलब्धियों का एहसास तब होता है जब पुराने मित्र अचानक मिल जाते हैं ! समय बदल जाता है ..स्थान बदल जाते हैं …लोगों के रंग बदल जाते हैं ..ढंग बदल जाते हैं ….शक्ल सूरत भी बदल जाते हैं ..पर वे पुरानी स्मृतियाँ ..यादें ..वो बीते हुए लम्हों की शाम कभी नहीं विलुप्त होतीं ! जब हम इन यंत्रों के माध्यम से मिलते हैं तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता ! सारी मनोकामना हमलोगों की पूरी हो जाती है ! हमें याद आता है वह मंज़र जब हम पत्राचार करते थे ! कभी ‘पोस्ट कार्ड ‘ ..कभी ‘अन्तर्देशीय’ …और ‘लिफाफा ‘ के माध्यम से लोगों को पत्र लिखते थे ! पत्र लिखना….पढाई का वह मापदंड होता था ..जिससे हमारी साहित्य निखरती थी ..भाषा अलंकृत होते थे ..हम बहुत कुछ सीखते थे ! इन प्रक्रिया का संचालन हमारे डाकघरों से हुआ करता था ! अब हमने तो छलांग लगाई है ! इन सारी प्रक्रियों के भाग्य विधाता हमारे इन्टरनेट बन गये हैं ! और हमारी मानसिकता ही मानो संकीर्ण हो चली है ! हम कुछ लिखना ही नहीं चाहते ! गूगल ने ‘लाइक’…’लव’ ….हाहा ‘ ….वो …सेड…..एंग्री और ना जाने कितने परमाणु बमों से हमें अलंकृत किया है ! कोई कितना भी जत्न से प्यार भरा आज भी ख़त लिखता है ..हम अपने शस्त्रागार से उपरोक्त परमाणु ही छोड़ते है ! इन परमाणुओं का प्रयोग भी हमें करना है साथ साथ पत्र लिखने की भी प्रवृतिओं को अमली जमा पहनना है ! फेसबुक के पन्नों से जुड़ने के बाद हमें निर्देश मिलता है …’कुछ लिखें ……….”और जो कोई प्यार और अनुराग से आपको पत्र लिखते हैं …जबाब तो देना दूर की बात ..या तो हम अपना ‘अंगूठा ‘ दिखा देते हैं ..या अपने शस्त्रागार से ‘लाइक’…’लव’ ….हाहा ‘ ….वो …सेड…..एंग्री से प्रहार करने लगते हैं ! अधिकांशतः लोग शायद पढ़ते भी नहीं हैं ! बस छद्म युध्यों का यह युग लगता है आ गया ! पत्राचार का रूप भले ही बदल जाये ..पर यह प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं हो सकती ! हरेक व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति अपनी भाषा में ही सहज लगती है ! भाषा के बंधनों में सिमटना श्रेयकर नहीं तथापि विभिन्य भाषाओँ को सीखना एक गर्व की बात है ! हमें पढना है और लिखना भी है …पत्राचार ही हमें लोगों से जोड़कर रखा था …रखा है ..और जोड़कर रखेगा !
=====================
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज
दुमका
झारखण्ड
८१४१०१

Language: Hindi
Tag: लेख
305 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
दौर ऐसा हैं
दौर ऐसा हैं
SHAMA PARVEEN
सर पर हाथ रख दूं तो आजाद हो जाएगा,
सर पर हाथ रख दूं तो आजाद हो जाएगा,
P S Dhami
'बेटी बचाओ-बेटी पढाओ'
'बेटी बचाओ-बेटी पढाओ'
Bodhisatva kastooriya
सलाह के सौ शब्दों से
सलाह के सौ शब्दों से
Ranjeet kumar patre
🙏 🌹गुरु चरणों की धूल🌹 🙏
🙏 🌹गुरु चरणों की धूल🌹 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बहे संवेदन रुप बयार🙏
बहे संवेदन रुप बयार🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जितना मिला है उतने में ही खुश रहो मेरे दोस्त
जितना मिला है उतने में ही खुश रहो मेरे दोस्त
कृष्णकांत गुर्जर
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
Keshav kishor Kumar
मुक्तक _ चाह नहीं,,,
मुक्तक _ चाह नहीं,,,
Neelofar Khan
//•••कुछ दिन और•••//
//•••कुछ दिन और•••//
Chunnu Lal Gupta
पितृ दिवस पर....
पितृ दिवस पर....
डॉ.सीमा अग्रवाल
मन  के  दीये  जलाओ  रे।
मन के दीये जलाओ रे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
दीपक और दिया
दीपक और दिया
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
तुम जो कहते हो प्यार लिखूं मैं,
तुम जो कहते हो प्यार लिखूं मैं,
Manoj Mahato
रमेशराज की माँ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की माँ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
दीपक सरल के मुक्तक
दीपक सरल के मुक्तक
कवि दीपक बवेजा
मुकाबला करना ही जरूरी नहीं......
मुकाबला करना ही जरूरी नहीं......
shabina. Naaz
4450.*पूर्णिका*
4450.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सच ही सच
सच ही सच
Neeraj Agarwal
सितमज़रीफी किस्मत की
सितमज़रीफी किस्मत की
Shweta Soni
हास्य गीत
हास्य गीत
*प्रणय*
एक सूरज अस्त हो रहा है, उस सुदूर क्षितिज की बाहों में,
एक सूरज अस्त हो रहा है, उस सुदूर क्षितिज की बाहों में,
Manisha Manjari
संघर्ष की राहों पर जो चलता है,
संघर्ष की राहों पर जो चलता है,
Neelam Sharma
"काश"
Dr. Kishan tandon kranti
এটা আনন্দ
এটা আনন্দ
Otteri Selvakumar
टूटे पैमाने ......
टूटे पैमाने ......
sushil sarna
*कभी लगता है जैसे धर्म, सद्गुण का खजाना है (हिंदी गजल/गीतिका
*कभी लगता है जैसे धर्म, सद्गुण का खजाना है (हिंदी गजल/गीतिका
Ravi Prakash
खोटे सिक्कों के जोर से
खोटे सिक्कों के जोर से
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
अंदाजा था तुम्हें हमारी हद का
अंदाजा था तुम्हें हमारी हद का
©️ दामिनी नारायण सिंह
Loading...