चुरा लो हसीन लम्हो को उम्र से, जिम्मेदारियां मोहलत कब देती ह
सुनो मैथिल! अब सलहेस कहाँ!
जरुरत क्या है देखकर मुस्कुराने की।
"मित्रों के पसंदों को अनदेखी ना करें "
तुम्हारा हर लहज़ा, हर अंदाज़,
अगर किसी के साथ अन्याय होता है
ख़बर थी अब ख़बर भी नहीं है यहां किसी को,
दिन भर घूमती हैं लाशे इस शेहर में
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि
बिड़द थांरो बीसहथी, खरो सुणीजै ख्यात।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
डॉ. कुँअर बेचैन : कुछ यादें
जैसे-जैसे हम चुनौतियों और असफलताओं की घुमावदार सड़कों पर चलत
23/186.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*