पत्रकारिता-ओझल होता हुआ चौथा स्तम्भ।
अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस के दिन लिखा गया मेरा यह लेख पत्रकारिता की वर्तमान दशा व दिशा पर केंद्रित है।
देश का चौथा स्तम्भ,जो बनता जा रहा है चाटूकारिता से,लोभ से,मोह से,एकपक्षीय तर्क से,नेपथ्य में रह रहे सच को छिपाने से।
जबकि इसको होना चाहिए था नीतिगत, तर्कगत समांतर पक्ष से ,सत्य से,धर्म से।
परन्तु वही है न कि “जब तक आका की गाएंगे नहीं, तब तक मालपुआ खाएंगे नहीं”।
पत्रकारिता हमें पुरातन काल के उस कपोत: से सीखनी चाहिए जो आपका संदेश बिना तोड़े ,बिना मरोड़े ,सीधे हूबहू आपके प्राप्तकर्ता तक पहुँचा देता था।
पर आज के कबूतर तो पत्र ही बदल देने में सक्षम है।
कहीं पढ़ा था दो पंक्तिया याद आ रही हैं।
“हथियार और औजार अपने पास रखे जनाब।
हम तो वो जमात है जो खंजर नही कलम से चोट करते हैं”।
उपयुक्त पंक्तियों में सत्य को देखा जाए तो वाकई आप चोट कर रहे हैं आम जनमानस के विश्वास पर,उनके एहसास पर और उनके सत्य के जानने के हक पर।
और यक़ीन मानिये साहब ये आपकी कलम ही लोगों के हथियारों और खंजरों को धार देती है।ये आपकी कलम ही धर्म की ,भड़कावे की आग लगाती है जिसमे आमजनमानस जलता है, फिर भी वो आपको पढ़ता है,आपको मानता है।
इसलिए उनके विश्वास को जिंदा बना रहने दीजिए, कृपया कर के साफ़ आईना बनिये,स्वांग रचने वाले बहरूपिये नहीं।
कुछ दो पंक्तियों में अपनी बात खत्म करना चाहूंगा-
की मत बांट हमे अपनी कलम की धार से।
ये वो घाव है ,जो ज्यादा है तलवार के वार से।
खैर अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस की बधाई।
“राधेय”