Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Aug 2018 · 4 min read

पत्रकारिता एक आईना

पत्रकारिता लोकतन्त्र का आईना होती है।
इस बात से प्रत्येक नागरिक भलीभांति रूप से परिचित है।लोकतन्त्र में पत्रकारिता की भूमिका वास्तविक रूप से बहुत ही अहम होती है।सम्पूर्ण लोकतन्त्र को सीधे वास्तविकता से जोड़ना ही पत्रकारिता का नैतिक दायित्व होता है।लेकिन मैं समझता हूँ पत्रकारिता नागरिकता से ज्यादा व्यावसायिक बंधक भी है। अगर कोई भी पत्रकार अपनी संस्था जिससे वो ताल्लुक रखता है उस संस्था की सीमा लांघकर कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहे तो उसकी परवाज़ भृष्टाचारी सफेदपोशों को रास नहीं आएगी और समय रहते उसके पर कतर दिए जायेंगे।फिर भी इसके लिए सीधे पत्रकारिता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
हम जानते हैं पत्रकारिता अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी देश की संस्कृति उसकी उन्नति उसमें होने वाली उथल-पुथल पर खासा नज़र रखती है।तब ये बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि पत्रकारिता देशहित के लिए एक महत्ववत्ता का हिस्सा है।हालाकिं मैं पत्रकारिता से जुड़ा व्यक्तिव नहीं हूं लेकिन साहित्यिक उड़ान में पूर्व से रुचि रखता आया हूं और पत्रकारिता की महत्ववत्ता और उसके विकराल रूप को भी भलीभांति समझता हूं।अगर पत्रकारिता कठपुतली बनकर कार्य करने लगे तब परिणाम नकारात्मक भी हो सकते हैं।मेरा मानना है पत्रकारिता स्वच्छ और पारदर्शिता से परिपूर्ण होनी चाहिए।
कभी कभी नतीज़े इतने ऊहापोह आते हैं कि प्रजातंत्र भी असमंजस में पड़ जाता है और जिस प्रकार के प्रमाण पत्रकारिता लोकतन्त्र के सम्मुख रखती है उसी को सत्यापित कर प्रजातन्त्र अपने भविष्य को गति देता है।इस स्थिति में कह सकते है पत्रकारिता जहां इक़ तरफ सकारत्मक भूमिका रखती है वहीं दूसरी तरफ नकारात्मक भी हो सकती है।ऐसा इसलिए नहीं हो सकता वो कमज़ोर या बंधक ही होती है कुछ हद तक ही ऐसा हो सकता है।हमें आदर करना चाहिए अपने संविधान का जिसमें सभी प्रकार से प्रजातन्त्र को जीवित , सुचारु व दुरुस्त रखने के लिए हर दृष्टिकोण से प्रावधान,व्यवधान किये गए हैं।हर स्थिति से निपटने के लिए संविधान सबसे बड़ी भूमिका रखता है और पत्रकारिता भी संविधान को अपना साया मानकर चले तब सम्भवतः पत्रकारिता की भूमिका निःसन्देह पारदर्शी व दूरदर्शी होगी।पत्रकारिता की पारदर्शिता ही लोकतन्त्र की आवश्यकता है।
जैसा कि सभी परिचित हैं जातिवाद देश की सबसे बड़ी समस्या रही है।इस समस्या को सुलझाने में इसका हल करने में पत्रकारिता इक़ अद्वितिय भूमिका अदा कर सकती है।लेकिन एक सच्चा नागरिक होते हुए मैं देखता हूं पत्कारिता का एक चौथाई हिस्सा भी इस समस्या को सुलझाने में कोई रुचि नहीं दिखाता।इसका सीधा प्राय ये निकलता है पत्रकारिता व्यक्तिगत तौर पर भी कार्य करती है।मुझे खेद है इस बात को कहते हुए लेकिन यही सच भी है।
अगर पत्रकारिता निस्वार्थ और प्रजातन्त्र का आईना मात्र ही बनकर कार्य करें तब इस बात में दो राय नहीं होगी कि पत्रकारिता देश की सबसे बड़ी ताकत है।देश का सुरक्षा कवच है।
चूंकि वर्तमान स्थिति में हमारे समाज में इतनी विसंगतिया, चोरियां ,भृष्टाचार और दीमक बनकर देश को खोखला बनाने की साजिशें होती है कि वो सब देश के भीतर ही हो रहा है।तब जाहिर है पत्रकारिता इन सब मुद्दों पर बेबाक़ होकर निःस्वार्थ कार्य करें और अपनी महत्वत्ता को कायम रखें अपनी भूमिका को लोकतन्त्र के मस्तिक्ष में बनाए रखें।मैं ये भी समझता हूं देश इक़ निर्जीव कमरे की भांति है जिसके चार स्तम्भ हैं जिनमें से एक संविधान दूसरा लोकतन्त्र तीसरा सेना और चौथा स्तम्भ पत्रकारिता है जिनमें से चारों ही स्तम्भ महत्वपूर्ण हैं।इन चारों स्तम्भों पर सम्पूर्ण देश टिका है।यदि ये ज़रा भी गलत प्रवाह में चलें तब परिणाम दुष्प्रभावी हो सकते हैं।वर्तमान में तकनीकियों को देखते हुए हम अंदाजा लगा सकते हैं कि पहले की अपेक्षा आज एक स्व बढ़कर एक साधन और मशीनीकृत रुझान उपलब्ध हैं।इनका सौ फीसद पारदर्शी प्रयोग ही देश को और भी ज्यादा उन्नत बना सकता है।
इन तकनीकियों की देन का श्रेय हमें राजीव गांधी जी को देना चाहिए जिन्होंने इकीसवीं सदी में भारत को विकसित देशों की सूची में बेहतर स्थान दिलाने के सपने को पूरा करने के लिए देश मे कम्प्यूटर ,मोबाइल जैसी और भी न जाने कितनी इन तकनीकियों की देन का श्रेय हमें राजीव गांधी जी को देना चाहिए। जिन्होंने इकीसवीं सदी में भारत को विकसित देशों की सूची में बेहतर स्थान दिलाने के सपने को पूरा करने के लिए देश मे कम्प्यूटर ,मोबाइल जैसी और भी न जाने कितनी ज़रूरी तकनीकी मशीनों का आगमन कर स्मरणीय भूमिका अदा की।आज की पत्रकारिता का स्वरूप राजीव गांधी का सपने का स्वरूप है।
और मै समझता हूं पत्रकारिता भी सबसे पहले देशहित को ही वरियता प्रदान करे, पारदर्शिता को कायम रखे ताकि प्रत्येक नागरिक आश्वत हो सके स्वतंत्रता से जीवन यापन करें और संविधान को साक्षी मानकर देश को उन्नत बनाने में सहभागिता करता रहे।चूंकि मुझे आज पत्रकारिता की भूमिका के विषय पर लिखना था लेकिन मैं हर उस बात को कहने के लिए स्वतंत्र हूं जिसके प्रमाण मैं रखता हूँ जैसा मैं देखता हूँ।
इस लेख में मैंने पत्रकारिता की सकारात्मकता व नकारात्मकता से क्रियाकलाप करते हुए सन्तुलन बनाने का प्रयास किया है।मैं कभी भी एक पक्षीय बात नहीं लिख सकता न ही कह सकता।चूंकि मैं भलीभांति अवगत हूँ हर चमकती चीज सोना नहीं होती।
हर चीज सम्पूर्ण नहीं होती।हर चीज हर विषय हर वर्ग,हर इक विषयवस्तु पर हमें सभी दृष्टिकोणों से अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए और पूछने वाले को भी सभी प्रकार की जानकारी के लिए प्रश्न रखना चाहिए न सिर्फ एक पक्षीय जानकारी के लिए।

त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ?
धन्यवाद!@
___अजय “अग्यार

Language: Hindi
Tag: लेख
355 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बेख़ौफ़ क़लम
बेख़ौफ़ क़लम
Shekhar Chandra Mitra
नफरत दिलों की मिटाने, आती है यह होली
नफरत दिलों की मिटाने, आती है यह होली
gurudeenverma198
दास्ताने-कुर्ता पैजामा [ व्यंग्य ]
दास्ताने-कुर्ता पैजामा [ व्यंग्य ]
कवि रमेशराज
उसकी आवाज़ हरेक वक्त सुनाई देगा...
उसकी आवाज़ हरेक वक्त सुनाई देगा...
दीपक झा रुद्रा
बात क्या है कुछ बताओ।
बात क्या है कुछ बताओ।
सत्य कुमार प्रेमी
जा रहा हु...
जा रहा हु...
Ranjeet kumar patre
" आज चाँदनी मुस्काई "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
मन मयूर
मन मयूर
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
मंजिल की तलाश में
मंजिल की तलाश में
Chitra Bisht
सब गोलमाल है
सब गोलमाल है
Dr Mukesh 'Aseemit'
सौदेबाजी रह गई,
सौदेबाजी रह गई,
sushil sarna
मंजिल यू‌ँ ही नहीं मिल जाती,
मंजिल यू‌ँ ही नहीं मिल जाती,
Yogendra Chaturwedi
*रिमझिम-रिमझिम बारिश यह, कितनी भोली-भाली है (हिंदी गजल)*
*रिमझिम-रिमझिम बारिश यह, कितनी भोली-भाली है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
"गलतफहमियाँ"
जगदीश शर्मा सहज
ग़ज़ल _ दर्द सावन के हसीं होते , सुहाती हैं बहारें !
ग़ज़ल _ दर्द सावन के हसीं होते , सुहाती हैं बहारें !
Neelofar Khan
हाथी मर गये कोदो खाकर
हाथी मर गये कोदो खाकर
Dhirendra Singh
जीवन के दिन चार थे, तीन हुआ बेकार।
जीवन के दिन चार थे, तीन हुआ बेकार।
Manoj Mahato
राहें  आसान  नहीं  है।
राहें आसान नहीं है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
हलधर फांसी, चढ़ना कैसे, बंद करें.??
हलधर फांसी, चढ़ना कैसे, बंद करें.??
पंकज परिंदा
आदमी आदमी के रोआ दे
आदमी आदमी के रोआ दे
आकाश महेशपुरी
2800. *पूर्णिका*
2800. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दहकता सूरज
दहकता सूरज
Shweta Soni
स्मृति
स्मृति
Neeraj Agarwal
मायका
मायका
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"जगह-जगह पर भीड हो रही है ll
पूर्वार्थ
"ककहरा"
Dr. Kishan tandon kranti
.........???
.........???
शेखर सिंह
😊भायला-भायलियों!
😊भायला-भायलियों!
*प्रणय*
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
VINOD CHAUHAN
मेरे जज़्बात कुछ अलग हैं,
मेरे जज़्बात कुछ अलग हैं,
Sunil Maheshwari
Loading...