पत्थर
सागर माँ बाप का एकलौता बेटा पिता किसी तरह से मजदूरी करता माँ घर घर वर्तन मांजती तब जाकर किसी तरह से दो जून की रोटी की व्यवस्था हो पाती ना तो रहने के लिए कोई घर ना ही खेती खेती बारी उसके बाद गांव के जमींदार की बेगारी।
फिरंगी अपनी किस्मत को कोसते रहते ईश्वर ने इंसान का जन्म तो दिया लेकिन बना रखा जानवर है इंसानों के बीच ही कोई हैसियत कद्र नही ।
पत्नी विहुला भी अपने पति फिरंगी और परिवार की दशा पर जन्म को कोसती रहती सागर की उम्र दस वर्ष की हो चुकी थी गाँव के प्राइमरी पाठशाला से उसने पांचवी जमात पास कर लिया था आगे की पढ़ाई के लिए उसकी हैसियत नही थी जिसके कारण वह आगे की पढ़ाई पूरी नही कर सका ।
फिरंगी को जमींदार राम लौट सिंह ने एक दिन बुलाया की दरवाजे पर पुराना पाकड़ का पेड़ ठूठ हो चुका है उंसे काटना है फिरंगी और एक दो मजदूर और पकड़ का पेड़ काटने लगे पेड़ काटते काटते एका एक फिरंगी के ऊपर ही गिर पड़ा ।
फिरंगी के कमर से नीचे का हिस्सा दब गया गनीमत यह था कि फिरंगी का कमर से ऊपर का हिस्सा नही दबा था मृत्यु की संभावना तो नही थी किंतु दोनों पैर विल्कुल बेकार हो चुके थे जमींदार राम लौट फिरंगी को लेकर अस्पताल गए जहां डॉ सिद्धार्थ ने उन्हें बताया कि फिरंगी का इलाज बड़े अस्पताल में ही संम्भवः है जिसके लिए लाखों का खर्च आ सकता है ।
जमींदार राम लौट डॉ सिद्धार्थ से बोले कोई बात नही डॉ साहब आप फौरी तौर पर फिरंगी के जख्मो का इलाज कर दे फिरंगी कौन बड़ा महत्वपूर्ण मनई है कि इनके ना चले फिरे से देश पर आफत आ जायेगा ।
डॉ सिद्धार्थ ने जमींदार राम लौट के आदेश का पालन करते हुए फिरंगी का फौरी तौर पर इलाज किया जिससे जख्म समाप्त हो जाये किंतु कमर एव दोनों टूटे पैर जस का तस रह गए।
सागर एव उसकी माई विहुला ने डॉ सिद्धार्थ से इलाज के बाबत जानकारी प्राप्त किया तो उनके होश उड़ गए डॉ सिद्धार्थ ने बताया कि जमींदार राम लौट जी ने फिरंगी के इलाज पर आने वाले लाखों के खर्च को देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि फिरंगी के चले फिरे से देश न दौड़ पड़ेगा पड़े रहने दीजिए अपाहिज बन कर कुछ दिनों में खुद ही मर जायेगा ।
विहुला डॉ की बात सुनकर चीख चीख कर रोने लगी सागर को समझ मे ही नही आ रहा था कि वह करे भी तो क्या ?
बापू के मेहनत मजदूरी से दो जून कि रोटी नसीब हो जाती थी अब सब माँ के माथे का बोझ होगा जमींदार से लड़ने की बात तो दूर इतनी भी हैसियत नही थी कि माँ बेटे यह भी सवाल कर सके कि आपके काम मे ही बापू अपाहिज हुआ है आपकी जिम्मेदारी बनती है ।
विहुला चीख चीख विलख विलख रोते हुए भगवान को ही दोष दे रही थी बार बार यही कह रही थी कि दुनियां में अपने ही रूप में शैतान बनाकर उनको ताकतवर क्यो बना दिया ?
जो तेरी दुनियां को अपनी जागीर की तरह जैसा चाहते है हांकते है कुछ ही देर में जमींदार राम लौट सिंह आये और बोले देख विहुला हमसे जो बन पड़ा हमने किया अब फिरंगी की किस्मत हम तो लिखे नही है ऊ तो जो सबकी किस्मत लिखता है भगवान उसने लिखा है ऊ लिखे है कि फिरंगी घिस घिस कर जिनगी जिहे और मरिहे त एमा हम का करी सकित हमारे यहाँ वर्षो से दु चार मजदूर रोजे काम करत आवत है अब फिरंगी कि साथे दुर्घटना हौवें वाली रहे वोमा हमार कौन दोष ई ले पाँच सौ रुपया ये के घर ले जा और एका सेवा सुसुरका कर भगवान शायद ये के दुःख दूर कर देवे ।
विहुला जमींदार राम लौट का पैर पकड़कर याचना करती हुये बोली मॉलिक सागर के बापू के इलाज करा दे आप जो कहिबे हम करब जमींदार राम लौट ने विहुला से अपना पैर छुड़ाने की बहुत कोशिश किया मगर जब वह नही छुड़ा पाया तब उसने बहुत तेज ठोकर पैर से विहुला को मारा विहुला डॉ सिद्धार्थ कि क्लिनिक से टकरा गई और उसका सर फट गया और खून का फब्बारा फुट पड़ा जमींदार राम लौट डॉ सिद्धार्थ से बोले डॉ साहब विहुला के मरहम पट्टी कर दीजिएगा।
इनता कह कर अपनी चमचमाती गाड़ी में बैठे और चलते बने सागर माँ की दशा देख हतप्रद रह गया उसका कोमल मन कल्पना नही कर सकता था कि जिस दुनियां में उसने जन्म लिया है वह निष्ठुर और क्रूर के साथ साथ अमानवीय है ।
डॉ सिद्धार्थ ने विहुला के सर पर टांके लगाए और कुछ दवाएं दी और सागर से बोले बेटे यही से तुम्हारी परीक्षा का दौर शुरू है क्योकि तुम्हारे बाबू अब शायद विस्तर से कभी उठ सके ?
क्योकि इसके लिए बहुत महंगे इलाज की आवश्यकता होगी जिसमें तुम सक्षम हो नही माँ स्वस्थ होगी भी तो घर घर वर्तन माज कर कितना कमा लेगी अतः अब तुम्हे ही समय कि भट्ठी में तपना होगा ।
विहुला को होश आया सागर बोला माई ई जालिम दुनियां में मांगे भीख नही मिलत मिलत है तो बेबसी लाचारी दुःख दर्द तुम चिंता ना करो सब ईश्वर भरोसे छोड़ो बापू को घर ले चल कौनो रास्ता जरूर निकले ।
सागर विहुला फिरंगी को लेकर घर आये जमींदार रामलौट के दिये पांच सौ रुपयों से एक सप्ताह का खर्च बामुश्क़िल चल सका उसके बाद विहुला बाई के काम करने लगी लेकिन वह काम मे बहुत समय नही दे पाती क्योकि अपाहिज पति फिरंगी की सेवा में बहुत समय देना पड़ता।
जब वह काम पर जाती तब सागर पिता की देख रेख करता लेकिन खर्च पूरा नही पड़ता एक खर्च फिरंगी की कुछ दवाओं का भी बढ़ गया था ।
सागर माँ बापू कि स्थिति को देखकर परेशान रहता लेकिन वह क्या करे समझ नही पा रहा था।
एका एक दिन एक संत फिरंगी कि छोपडी के सामने से गुजर रहे थे उन्हें बहुत प्यास लगी थी रुके और छोपडी में आवाज लगाई बच्चा कोई है थोड़ा जल पिला दे गिलास में पानी लेकर सागर स्वंय निकला और संत को पानी पिलाया संत बोले बेटा तूने मुझे पानी पिलाया है अब तुम्हारे दुःख अवश्य दूर होंगे समझ लो तुम्हे बिन मांगे ही सब कुछ मिल गया औऱ चरितार्थ हो गया# बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख#
तुम्हे उसके लिए कोशिश करनी होगी तुम्हे कूड़े से शुरुआत करनी है।
सागर ने अपना कोमल मन बहुत लगाया कि कैसे कूड़े से कोई शुरुआत हो सकती है वह गांव के बाहर कुएं पर बैठा अपने भविष्य और संत की बात सोच ही रहा था तभी उसने देखा कि कुछ छोटे छोटे बच्चे हाथ मे पॉलीथिन का बड़ा बोरा लटकाए कूड़े के ढेर से कुछ चीजें बिन रहे है सागर उनके करीब जाकर बोला आप लोग क्या कर रहे है ?
कूड़े के ढेर से पुनरुपयोग की चीजों को बिन रहे है दिन भर बीनते है और शाम को बेचते है जिससे कुछ आय हो जाती है कबाड़ बनाते बच्चो ने जबाव दिया।
सागर बोला क्या हम भी यह कार्य कर सकते है ?
कबाड़ बीनने वालो ने बताया कि क्यो नही इसमें कौन सी लागत लगनी है सुबह से शाम तक कबाड़ बीनना है भाग्य से जो कुछ भी मिल जाये वह बहुत है।
दूसरे दिन से सागर ने उठा लिया कूड़े से कबाड़ बीनने का बोरा सुबह निकल जाता और दिन भर आस पास के गांवों में कूड़े से कबाड़ बिनता और उसे बेचता जिससे कुछ आय हो जाती विहुला को अधिक समय मिल जाता वह पति फिरंगी की बेहतर देख भाल कर पाती इस तरह से लगभग एक वर्ष बीत गए ।
एक दिन सागर सुबह कबाड़ बीनने निकला उंसे एक पत्थर मिला जिसे उसने अपने पास रख लिया और दिन भर कबाड़ बिंनने के बाद वह पत्थर लेकर घर गया पत्थर जब विहुला ने देखा तो वह समझ गयी कि सागर कोई सागर कोई साधारण पत्थर लेकर नही आया है आखिर वह स्वर्णकार की बेटी और स्वर्णकार की ही पत्नी थी उसने कहा बेटा सागर लगता है भगवान ने तेरी मासूम दिल कि आवाज सुन ली है क्योंकि जो पत्थर तुझ्रे कबाड़ बीनते समय मिला है वह कोई साधारण पत्थर नही है वह इतना कीमती है कि उसके कीमत से तू अपने अपाहिज पिता का इलाज भी करा सकता है और जीवन भर आराम से बैठ कर जीवन बिता सकता है ।
विहुला अपने मुंहबोले भाई से बात कर पत्थर के बेचने के लिए उपयुक्त बिरादर से बात करने को कहा पूरे स्वर्णकार समाज मे फिरंगी के अपाहिज होने की बात मालूम थी और सब मदद भी करना चाहते थे मगर कोई जोखिम उठाना नही चाहता था।
विहुला ने जब भाई के मार्फ़त पत्थर बेचने की बात किया तो स्वर्णकार समाज को लगा कि यही अवसर है जब विहुला कि मदद की जा सकती है और पत्थर खरीदने के लिए सबसे बड़े स्वर्णकार मल्लू सोनार तैयार हो गए और पत्थर की कीमत उन्होंने पंद्रह लाख लगाई ।
विहुला अनपढ़ होते हुए भी होशियार थी उसने मल्लू सोनार से पति फिरंगी के इलाज में आने वाले खर्च के लिए सीधे डॉक्टर को जितने पैसे लगे देने की बात कही और यदि कुछ बच जाए तो उसे भुगतान करने की बात तय किया ।
मल्लू को कोई एतराज नही था विहुला ने सबसे बड़े डॉक्टर डॉ हेम चंद्रा के अस्पताल में पति फिरंगी को भर्ती कराया डॉ हेम चंद्र को इलाज में आने वाले खर्चे का भुगतान करने का वचन एव लिखित आश्वासन मल्लू सोनार ने दिया डॉ हेम चंद ने फिरंगी का इलाज शुरू किया तीन महीने में पांच ऑपरेशन किया और एक साल फिरंगी डॉ हेम चंद के अस्पताल में भर्ती रहे एक वर्ष बाद फिरंगी पूर्ववत स्वस्थ एव चलने फिरने लायक हो गए ।
मल्लू सोनार ने डा हेम चंद को फिरंगी के इलाज का पूरा खर्चा दस लाख भुगतान कर दिया और शेष पांच लाख से फिरंगी को जेववरात बनाने की दुकान खोलवा दिया विहुला ने सागर से कहा बेटे हमने विलखते हुये जागीरदार राम लौट सिंह से तुम्हारे बापू के इलाज के लिए भीख मांगते रहे जो नही मिला और मिला भी तो बिन मांगे सही है मांगने से कुछ नही मिलता #बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख#
कुछ दिन बाद फिरंगी अपनी दुकान पर बैठे थे सागर भी जेवर बनाने का गुर सीखने दुकान पर बैठता सागर ने देखा वही संत जिसे उसने एक गिलास पानी पिलाया था दुकान पर आए और बोले बच्चा इधर आओ आज मैं प्यासा नही हूँ तुम्हे यह बताने आया हूँ कि मांगने से भीख भी नही मिलती जतन करने परिश्रम करने प्रायास करने से ही सब कुछ मिलता है देखा तुमने जब तुमने कबाड़ बिंसना शुरू किया बिना मांगे तुम्हे इतनी दौलत मिल गयी कि तुमने बापू का इलाज तो कराया ही पूँजी के अभाव में पुश्तैनी सोनारी का काम नही करते तुम्हारे बापू मजदूरी करते अब वह भी समस्या दूर हो गयी अब तुम स्वंय अपने मॉलिक हो ईश्वर नेक नियत ईमानदार निश्छल व्यक्ति को भीख नही मांगने देता बिना मांगे सब कुछ दे देता सही हैं#बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख#
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।