पत्थर
राह पाषाण अब तक धरा रह गया
मन्दिरों में वही बन दुआ रह गया
मार ठोकर बढ़ा जा रहा आदमी
रोज देवालयों जा झुका रह गया
मान भगवां जिसे पूजता आदमी
नेमतें जो मिली तो नफा रह गया
राह पाषाण अब तक धरा रह गया
मन्दिरों में वही बन दुआ रह गया
मार ठोकर बढ़ा जा रहा आदमी
रोज देवालयों जा झुका रह गया
मान भगवां जिसे पूजता आदमी
नेमतें जो मिली तो नफा रह गया