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13 Jun 2023 · 1 min read

पत्थर से दिल लगाने चले हैं

पत्थर से दिल लगाने चले हैं
फिर नई चोट खाने चले हैं

इंसान भी वो बन न सका
लोग जिसे मसीहा बनाने चले हैं

कभी लबों से चूमा था जिस को
इमरोज़ वही ख़त जलाने चले हैं

ख़ुदा ख़ैर करे उन के आशियाँ पर
बेकसों का घरौंदा जो गिराने चले हैं

मिरे घर में छाई है तारीकी ‘धरा’
हम औरों का अँधेरा मिटाने चले हैं

त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)

2 Likes · 227 Views
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