पत्थर भी रोता है
मैंने मुझ में मुझको देखा और फिर देख तुझ को।
पाया दोनों को एक-सा, अन्य बाह्य मोह-माया।।
रूह तो तेरी हो चुकी, तन जाएगा जल।
हां मैं देख रही हूं, अपना आने वाला कल।।
मन मरता है पल-पल, दिन ढलता हर-पल।
भूख-प्यास, नींद, आराम, सब लगता है हराम।।
क्या यह उम्र का तकाजा है!
या फिर शुरुआती आगाज़-ऐ-जनाजा है!!!
सच्चाई यह मन स्वीकारने में ऐंठता है।
पत्थर भी तो रोता है, कौन देखता है?