पत्थर दिल
लोग कहते हैं मुझे पत्थर दिल
जिन्दा तो हूँ पर जीवन रहित
अब ये सच लगता है मुझे भी
डरने लगी हूँ अपनी ही परछाई से भी
टकरा कर छोटे बड़े पाषाणों से
पत्थर सा दिखने लगा है ये तन
खाकर इनसे ठोकरें बार बार
टूट सा गया है ये मन
पर सच तो है ये भी
न हो भले ही पत्थर में जीवन
पर टकराते है जब वो आपस में
दे देते हैं संगीतमय तरंग
तराशे जाते हैं
जब सधे हाथों से
भर जाता है सौंदर्य से
इनका कण कण
हाँ मैं भी हूँ ऐसी ही पत्थर दिल
जिसमें प्राण भी है और जीवन भी
संगीत भी है और सौंदर्य भी
बस तराशने वाला कोई जाये मिल
– डॉ अर्चना गुप्ता