पत्थर और तुम
है अडिग, है कठोर
बेवजह क्यों बने हो बोझ
हट जाओ अब रास्ते से
पत्थर और तुम
राह में, जिंदगी में हो तुम ठोकर
तुम क्या जानो अपनो को खोकर
हैं दिए तकलीफ़ बराबर तूने
पत्थर और तुम
किसी के पैरों में तो किसी के जिंदगी में
पहुँचाते रहते हो आघात तुम
अब तो रुक जा, बदल रूप अपनी
पत्थर और तुम
छोड़ी बड़ी विविध स्वरूप तेरी
पग पग पर बाधा बन खड़ी
दर्द समझो लहूलुहान पैरों का
पत्थर और तुम
है औकात तो बन तू पूरक
कहीं संरंध्र, कहीं जिंदगी का
एहसासों को भरो एक बार
पत्थर और तुम
क्या दर्द हैं महसूस होगी
घुटने और जिंदगी के छलनी का
जब चोट लगेगी तुम्हें एक बार
पत्थर और तुम
एक बात मानों ख़ुदा के वास्ते
हट जाओ लोगों के रास्ते
सफ़र में तुम भी रहो, वो भी रहे
पत्थर और तुम
नोट:- कवि एक जिद्दी व्यक्ति की तुलना रास्ते के एक पत्थर से की है।
लेखक:- मुनीन्दर कुमार