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11 Mar 2022 · 1 min read

पत्थरो के शहर में शीशा रख के आई हूं

मैं झूठ के बाज़ार में सच रख के आई हूं
सफ़ेद दामन मेरा पाक था पाक ही रहा
मैं कोयले की खदान से यूं बच के आई हूं
मेरे मालिक मेहर रखना मेरे हौसले पर
मैं पत्थरों की नगरी में शीशा रख के आई हूं
तेरे खौफ़ से अब ये नज़रे झुकेंगी नही
मैं तलवार की धार पर सर रख के आई हूं
मैं झूठ के बाज़ार में सच रख के आई हूं
प्रज्ञा गोयल ©®

Language: Hindi
1 Comment · 148 Views
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