पत्थरो के शहर में शीशा रख के आई हूं
मैं झूठ के बाज़ार में सच रख के आई हूं
सफ़ेद दामन मेरा पाक था पाक ही रहा
मैं कोयले की खदान से यूं बच के आई हूं
मेरे मालिक मेहर रखना मेरे हौसले पर
मैं पत्थरों की नगरी में शीशा रख के आई हूं
तेरे खौफ़ से अब ये नज़रे झुकेंगी नही
मैं तलवार की धार पर सर रख के आई हूं
मैं झूठ के बाज़ार में सच रख के आई हूं
प्रज्ञा गोयल ©®