पत्थरों से उलझती रही
पत्थरों से उलझती रही
मन ही मन मैं सिसकती रही
दिल लगातार रोता रहा
भाग्य चुपचाप सोता रहा
बेबसी तो मेरी देखिये
हादसों से गुजरती रही
मन ही मन मैं सिसकती रही
ज़िन्दगी ने तो मुझसे कहा
वक़्त कब एक सा है रहा
मैं मगर अपनी जिद पर अड़ी
अनसुनी बात करती रही
मन ही मन मैं सिसकती रही
जब किया मैंने चिंतन मनन
हो गया मेरा बेचैन मन
जल बिना मीन की ही तरह
छटपटाती- तड़पती रही
मन ही मन मैं सिसकती रही
हो गई हूँ जुदा प्यार से
दूर हूँ जीत से, हार से
धड़कनों के मधुर साज़ पर
ताल साँसों की चलती रही
मन ही मन मैं सिसकती रही
26-08-2022
डॉ अर्चना गुप्ता