पत्ते की नोंक पर बूँद
पत्ते की नोंक पर
दाँव पर है अस्तित्व बूँद का
यहीं हाल हैं फैली हुई
ह्रदय की कमसिन इच्छाओं का
ऐसे ही हासिये पर
जिंदगी फिसलती जा रही है
एक छोर पर चल रहा इंसान
दूसरे को खींच रहा है भगवान
अस्तित्व हीन जीवन का
आयत व्यास माप हीन हो रहा
वृत के ऊँपर से ट्रेन
के डिब्बे सा ढुड़कता जा रहा है
गिर बूँद पत्ते की नोंक पर
तय कर लेती है अस्थिरता को
स्वीकार कर लेती है
अस्थिर जीवन की क्षणभंगुरता को