पति पथ गामिनी
आगन्तुक अधेड़ दम्पति ने मेरे कक्ष में प्रवेश करने के पश्चात पत्नी पार्श्व में पड़े मरीज़ के स्टूल पर और पति देव मेज़ के सामने पड़ी कुर्सी पर विराजमान हो गये। पति देव ने पत्नी की तकलीफों और बुराइयों का पुलिंदा मेरे सामने खोलना शुरू किया –
” डॉ साहब मैं इससे बहुत परेशान हूं और काफी पैसा इसके इलाज़ में लगा चुका हूं , ये हर समय चिड़चिड़ाती रहती है , घर के काम नहीं करती और कुछ कहूं तो मुँह फुला कर बैठ जाती है , लड़ती झगड़ती है । इसको नींद भी कम आती है आदि आदि ”
इस बीच उसकी पत्नी अनैक्षित उदासी ओढ़े ख़ामोश बैठी रही । पति देव् के उलाहने सुनते सुनते उसकी आंखें आंसुओं से डबडबा गयीं ।
जब मैंने उसकी पत्नी से उसका हाल जानने और उसकी तकलीफों के बारे में उससे पुष्टि करना चाही तो उसके सजल नेत्रों से कुछ अश्रु उसके कपोलों पर ढलक गये और कुछ lacrimal duct से होते हुए उसकी नाक एवम गले मे उतर गये जिससे वो सुड़ सुड़ कर सुबकने लगी । मेरे प्रश्न के उत्तर में वह अपनी कातर , मूक बधिर सी दृष्टि तरेर कर पति को घूरने लगी ।
उसके मनोभाव उजागर करती उसकी चुप्पी एवम सुब्कियों ने मुझे उसकी तमाम अनकही वेदना के वो स्वर जो वह शब्दों में न व्यक्त कर सकी उसके लक्षणों में प्रतिलक्षित कर दिए।
कुछ सोच समझ कर मैंने उसे मानसिक अवसाद दूर करने वाली दवाइयों का पर्चा लिख कर उसकी ओर बढ़ाया जिसे उसके पति देव ने बीच मे ही अपने कांपते हाथों से लपक लिया । किसी कापुरुष सदृश्य पति देव के बुझी राख से पुते चेहरे पर धँसी मटमैली आंखों , सिगरटीया होंठ और निकोटीन रंजित पीले भूरे नाखून जड़ित कम्पित उंगलियों ने मेरे चिकित्सीय अनुभव को इतना उद्वेलित कर दिया कि मैं न चाह कर भी अपनी हिचक छोड़ उससे पूंछ बैठा –
” क्या आप शराब पीते हैं ? ”
मेरे इस अप्रत्याशित प्रश्न से सकपका कर इससे पहले कि वो कुछ कहता उसकी पत्नी जो अब तक चुपचाप बैठी थी , बुलन्द आवाज़ में बोल उठी
” रोज़ ”
पत्नी की इस बात से आहत उसके पति ने अपने बचाव में उसे तिरिसकृत करते हुए करते हुए उलाहना दिया –
” डॉ साहब , यह भी तो शराब पीती है , पूंछ लीजिये इससे ”
पति के इस उपहास से पत्नी के भीतर दबी क्रोध की ज्वालामुखी में विस्फोट हो गया । वह आक्रोश आवेषित , तमतमाये , आभा मण्डल पर स्थित सभी अश्रुपूरित रन्ध्र एकीकृत करते हुए नाक सुड़प कर एक चुटैल सर्पनी की तरह फुफकार उठी –
” तुम्हारी वज़ह से , तुम्हारे लिए , तुम्हारी शराब कम करने के लिए , शराब से तुम्हारा नुक्सान कम करने के लिये मैं पीती हूं !
हां , डॉक्टर साहब मैं पीती हूं , लेकिन इनकी कम करने के लिये ”
अचानक उसके इस कथन में निहित मद्यपान हेतु मात्र इस कारण ने मुझे उस महिला को एक बार तो उन विश्व प्रतिष्ठित हस्तियों के समकक्ष खड़ा करने के लिये प्रेरित कर दया जिन्होंने दूसरों के लिये खुद ज़हर पी लिया था । लेकिन यह प्रतिष्ठा एक बुरे नशे की लत जनित होने के कारण मैंने इस विचार को परे झटक दिया । इसकी जगह अब मैं सोच रहा था कि इतने सालों तक , इतने मत भेदों के साथ ग्रह कलह में दक्ष , हमसफ़र , हमप्याला हम निवाला दम्पति की समस्याओं का हल अगर मेरी दवाओं से या और कहीं नहीं है तो कम से कम ” शराब ” में तो नहीं ! तो फिर इस प्रारब्ध का अंत कहां ?
या फिर यही है जो ज़िन्दगी ।