Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2021 · 5 min read

पति के बिना जीवन

कस्बे में पंडित दीनानाथ का प्रतिष्ठित परिवार था। जमीन जायदाद, दो बेटे ललित और अखिलेश एक बेटी उमा थी, तीनों पढ़ रहे थे इस बार उमा हायर सेकेंडरी में पढ़ रही थी, पढ़ाई में अच्छी थी प्रथम श्रेणी में पास हो गई। एक दिन मां कमला ने व्यारू के समय बड़े प्यार से कहा, उमा के पिताजी आपको कुछ चिंता है कि नहीं, अब हमारी उमा बड़ी हो गई है, कुछ शादी ब्याह के बारे में सोचा है कि नहीं?
हां कमला चिंता तो मुझे भी हो रही है, कोई योग्य लड़का मिल जाए तो मैं तुरंत शादी कर दूंगा, मैंने कई रिश्तेदारों से लड़का बताने के लिए कहा है, वैसे भी जवान बेटी को घर में बिठाए रखना उचित नहीं माना जाता। उमा ने माता-पिता की बातें सुन ली थी मां से बोली मां दोनों बड़े भाई शहर में पढ़ रहे हैं, मुझे भी आगे पढ़ना है शादी पहले बड़े भाइयों की करो, मुझे क्यों इतनी जल्दी घर से निकालने पर तुली हो? नहीं बेटा पढ़ना है तो ससुराल में ही पढ़ लेना, हमें अपने फर्ज से फारिग होने दो। मां बाप ने एक न सुनी आखिर मामा जी के बताए हुए लड़के से उमा की सगाई तय हो गई। देव उठने के बाद बड़ी धूमधाम से उमा की शादी हो गई। ससुराल भी अच्छा था अच्छी खेती बाड़ी एक देवर एक नंद थी। उमा पति एवं ससुराल के व्यवहार से बहुत खुश थी। शादी को 2 साल होने जा रहे थे, शादी की वर्षगांठ जोर शोर से मनाने की तैयारी चल रही थी। प्रदीप इसी सिलसिले में शहर जा रहे थे, उमा से भी कहा तुम भी चलो कुछ अपने लिए साड़ी और जरूरत का सामान खरीद लाना, दोनों शहर गए अपना काम कर वापस लौट रहे थे कि एक डंपर ने सामने से टक्कर मार दी। प्रदीप मौके पर ही दम तोड़ चुके थे, उमा हॉस्पिटल में बेहोश पड़ी थी, हंसती खेलती हंसती खेलती जिंदगी पर वज्रपात हो चुका था, आगे सब अंधकार ही अंधकार। माता-पिता भाई 13 वीं के बाद घर चले गए उमा तो जैसे पथरा सी गई, 7 माह की गर्भवती थी ससुराल वाले कुलदीपक की आशा कर रहे थे। समय आने पर प्रसूति हुई, उमा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। कन्या का जन्म होते ही ससुराल वालों को तो जैसे सांप सूंघ गया हो, कुलदीपक की आशा लगाए बैठे थे। सास ससुर देवर नंद सबका व्यवहार उमा के प्रति बदल गया। बात-बात पर ताने एक दिन तो सास ने कह दिया मुंह काला कर जाओ यहां से, कुलटा है मेरे बेटे को खा गई। उमा को ताने सुनने के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है, मायके में मां ने यही पाठ पढ़ाया था, कि एक बार मायके डोली उठती है, तो ससुराल से ही अर्थी उठती है। उमा के दुख का कोई पाराबार न था, ससुराल वाले सोचते थे कलमुही ने लड़की जनि है, शादी विवाह करना पड़ेगा, हिस्सा मांगेगी सो अलग, ससुराल वाले उमा को भगाने के प्रयास में थे। आखिर एक दिन देवर गलत नीयत से भाभी के कमरे में पहुंच गया, उमा की नींद खुल गई देवर जी यह क्या कर रहे हो? चिल्लाई सभी घरवाले एकत्र हुए तो देवर ने कहा, मां मैंने इसके कमरे से किसी को भागते हुए देखा है, उल्टा ही आरोप लगा दिया, उमा की एक न सुनी। अब तो उमा को घर छोड़ने के अलावा कोई चारा दिखाई नहीं देता था। आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है, सुबह बस में बैठ कर मायके आ गई, मां से लिपट कर रोने लगी भाभियां इस दुख भरी घड़ी में भी कहती रहीं, ननद जी कुछ भी हो ऐसे आपको घर छोड़कर नहीं आना चाहिए, आखिर तुम्हारा हक है उस घर पर, आखिर पूरी जिंदगी पड़ी है, कहां तेर करोगी? कौन तुम्हारा खर्च उठाएगा? कौन पढ़ाएगा? कौन ब्याह शादी करेगा? मां ने बहुओं को चुप कराते हुए कहा, चुप भी हो जाओ सांस तो लेने दो? बहुयें मुंह बनाते हुए उठ खड़ी हुईं। उमा चुपचाप पथराई आंखों से सब सुन रही थी। ससुराल की परिस्थिति देख काशी नाथ जी की हिम्मत उमा को दोबारा ससुराल भेजने की नहीं हुई, इस भयानक हादसे, बहू बेटों का उमा के प्रति व्यवहार, सारी परिस्थितियों से काशीनाथ और कमला बीमार रहने लगे थे। एक दिन काशी नाथ जी को सीने में दर्द उठा, आंगन में गिर पड़े फिर उठ न सके, अब तो बहू बेटों का व्यवहार और भी बदल गया। साल भर भी ना हुआ था कि एक दिन कमला भी चल बसी। उमा अब और भी अकेली हो गई थी। गुमसुम सी अपने और बच्ची के भविष्य के बारे में सोचती रहती थी, उमा को एक कोठरी रहने के लिए मिली थी जो मिल जाता खा लेती, जीवन निकाल रही थी कि भाई भाइयों ने हिस्से के डर से उमा को उमा को उस कोठरी से भी निकाल दिया। ऐसी स्थिति में कई बार उमा को आत्मघात करने का विचार आया लेकिन बच्ची की ओर देखते ही जीने की लालसा उठ खड़ी होती थी। आखिर हिम्मत मजबूत की, कस्बे में ही एक कमरा किराए पर ले, अगरबत्ती की फैक्ट्री में काम करने लगी। बच्ची का स्कूल में दाखिला करा दिया, खुद भी d.ed करती रही। आखिरकार उमा d.ed पास हो गई। एकाध साल बाद उमा की शिक्षक की नौकरी भी लग गई। उमा आराम से रहने लगी। उमा को ससुराल मायके के अत्याचार याद आते ही घाव हरे हो जाते थे। एक दिन जैसे माता-पिता कह रहे हो उठो उमा, तुमको किसने छोड़ा, तुम भी किसी को मत छोड़ो। अपना अधिकार मांगो और इस असंवेदनशील समाज को सबक सिखाओ। ठीक है तुम भाग्यशाली हो तुम्हारी नौकरी लग गई है, लेकिन तुम जैसी कितनी ही कन्याओं को इस समाज में कितना अत्याचार सहना पड़ता है? तुम से अच्छा कौन जानता है? तुम अपनी मेहनत और काबिलियत से एक इज्जतदार जिंदगी जी रही हो, लेकिन तुमको तो इस समाज ने कहीं का नहीं छोड़ा था। उठो उमा उठो। उमा के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई, जैसे नई शक्ति मिल गई हो। आखिर काबिल वकील कर उमा ने ससुराल एवं मायके वालों पर हिस्से का मुकदमा दायर कर दिया। कुछ समय बीतने पर वह मुकदमा भी जीत गई। आज ससुराल और मायके वाले उमा के कदमों में पढ़े थे।

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

3 Likes · 6 Comments · 337 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सुरेश कुमार चतुर्वेदी
View all

You may also like these posts

पिता' शब्द है जीवन दर्शन,माँ जीवन का सार,
पिता' शब्द है जीवन दर्शन,माँ जीवन का सार,
Rituraj shivem verma
ग़ज़ल _ असुरों के आतंक थे ज़्यादा, कृष्णा ने अवतार लिया ,
ग़ज़ल _ असुरों के आतंक थे ज़्यादा, कृष्णा ने अवतार लिया ,
Neelofar Khan
शीर्षक:सिर्फ़ निकलने के लिए
शीर्षक:सिर्फ़ निकलने के लिए
Dr Manju Saini
जो हैं आज अपनें..
जो हैं आज अपनें..
Srishty Bansal
पुरानी पीढ़ी की चिंता
पुरानी पीढ़ी की चिंता
Praveen Bhardwaj
"मुरीद"
Dr. Kishan tandon kranti
***
*** " तिरंगा प्यारा.......!!! " ***
VEDANTA PATEL
"आपके पास यदि धार्मिक अंधविश्वास के विरुद्ध रचनाएँ या विचार
Dr MusafiR BaithA
*संत सर्वोच्च मानक हो जाये*
*संत सर्वोच्च मानक हो जाये*
Mukta Rashmi
सत्य मिलन
सत्य मिलन
Rajesh Kumar Kaurav
■ लघुकथा / क्लोनिंग
■ लघुकथा / क्लोनिंग
*प्रणय*
अंजान बनकर चल दिए
अंजान बनकर चल दिए
VINOD CHAUHAN
कवि और केंकड़ा
कवि और केंकड़ा
guru saxena
बुजुर्ग बाबूजी
बुजुर्ग बाबूजी
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
17. सकून
17. सकून
Lalni Bhardwaj
वर्ण
वर्ण
Rambali Mishra
जिसे छूने से ज्यादा... देखने में सुकून मिले
जिसे छूने से ज्यादा... देखने में सुकून मिले
Ranjeet kumar patre
संस्कार
संस्कार
Dr.Pratibha Prakash
बड़ी अजब है प्रीत की,
बड़ी अजब है प्रीत की,
sushil sarna
इंसानियत का चिराग
इंसानियत का चिराग
Ritu Asooja
संविधान को अपना नाम देने से ज्यादा महान तो उसको बनाने वाले थ
संविधान को अपना नाम देने से ज्यादा महान तो उसको बनाने वाले थ
SPK Sachin Lodhi
फलों से लदे वृक्ष सब को चाहिए, पर बीज कोई बनना नहीं चाहता। क
फलों से लदे वृक्ष सब को चाहिए, पर बीज कोई बनना नहीं चाहता। क
पूर्वार्थ
हर पाँच बरस के बाद
हर पाँच बरस के बाद
Johnny Ahmed 'क़ैस'
4897.*पूर्णिका*
4897.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
The_dk_poetry
गाँधीजी (बाल कविता)
गाँधीजी (बाल कविता)
Ravi Prakash
एक ऐसा मीत हो
एक ऐसा मीत हो
लक्ष्मी सिंह
बनी रही मैं मूक
बनी रही मैं मूक
RAMESH SHARMA
कलियुग की सीता
कलियुग की सीता
Sonam Puneet Dubey
मजे की बात है
मजे की बात है
Rohit yadav
Loading...