पति की विवशता
दो धरोहरों के बीच में, खड़ा हूँ मैं अकेला,
माँ-बाप की छाया में, बीता बचपन का मेला।
अब जीवन की राह में, संगिनी है मेरी प्यारी,
दोनों को खुश रखने की, रखता हूँ पूरी तैयारी।
माँ की ममता, पिता का प्यार, अनमोल है ये धन,
पत्नी का भी साथ चाहिए, जीवन का सुखद चमन।
कैसे करूँ मैं न्याय यहाँ, दोनों ही हैं मेरे अपने,
किसी सपने करूँ पूरे , आखिर तोडूं किसके सपने।
दोनों के प्यार में बंटा, दोनों की आशा में जीता,
इस दुविधा की घड़ी में भी, प्रेम की राह पे चलता।