पता है क्यों…
पता है क्यों…
जब हालात समझ से बाहर चले जाए,
लौटकर आनेवाले परिंदे ,
हमेशा के लिए उड़ जाए ,
अपना ही आसमान जब पराया हो जाए,
हालातों से लड़कर मन थक जाए,
तो उत्तर अपने आप मिल जाए,
पता है क्यों…
पहिले अंजान जरूर थे ,
कठिनाइयाँ कितनी थी लेकिन,
रास्तों की चाहत दिल में भरते थे,
परेशानियों से वो भागते नहीं थे,
जीने की चाहत मौत के परे थी ,
खामोशियों से जख्म भर जाते थे,
लाख गमों को छुपाए मुस्कुरा जाए,
नन्ही किलकारीयों में खो जाए ,
पता है क्यों…
बातों को आँखों से बयान करते,
ऐसे ही टाल देना वो समझ जाते थे ,
बड़ों की डांट भी अपनाकर ,
मन से सम्मानित उनको ,
हर रोज किया करते थे,
इसलिए शायद वो हर वक्त ,
मुस्कुराकर जीया करते थे ,
फूलों की खुशबु दिल में भर जाए,
किसी का पेट भर कर जो खुद भूखा रह जाए ,
पता है क्यों…
बाते दिल खोलकर होती थी,
किसी से मिलने की अपाईनमेंट,
भूलकर भी नहीं लेते थे ,
एक दूसरे को डिस्टर्ब करना,
बॅडमॅनर्स नहीं कहलाते थे,
जरूरत जब हो ,
दुश्मन भी दौड़कर आते थे ,
पता है क्यों…
इसीलिए शायद ,
अपनेपन का एहसास झुम जाए,
तब और अब में फर्क पड़ जाए,
हालातों से लड़कर मन थक जाए,
तो उत्तर अपने आप मिल जाए,
पता है क्यों…