पता नही …….बादशाह ❤️
आज मेरे मन मे फिर से जिक्र उठा … वही मनोज मुन्तशिर की पंक्ति ‘ एक नाम था जो रख लिया ,जिसे जीवन भर ढो रहा हूँ —बादशाह ” ।
बादशाह की होड़ ने फकीर बना दिया ,सच है पहले फकीरी की संघर्ष और उस पर विजय शायद बादशाह बनने का एक मूलमंत्र हो । ऐसा मेरी अंतरात्मा कहती है । ऐसा इसलिए भी लगता है ना बिना समझदार हुए ,बिना पके और बिना तपे जिस साम्राज्य के आप मालिक बनेंगे ,शायद वह भी परीक्षण कर की आप मे दम हो ।
इतिहास में जब देखा जाता है और पढ़ा भी जाता है तो ऐसा लगता है कि राजा – रानी और उनका प्रशासन तथा उनकी प्रजा ही सब कुछ है । पर राजा बनना इतना आसान भी तो नही ।
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रानी और प्रशासन ये मेरे जेहन में कैसे आया मुझे नही मालूम …लेकिन इसके तकलीफे बहुत लाजवाब है जो यह शिक्षित करती है कि पहले बादशाह के गुण तो अर्जित कर …” अनुशासन ,न्याय, पारदर्शिता , और विनम्रता के साथ सामंजस्यता और इसके साथ नेतृत्व व विश्वास ” ।
शायद ही कोई इस संघर्ष रूपी जीवन मे इतना एक साथ कर पाए , लेकिन रामधारी सिंह दिनकर की वह पंक्ति हमेशा मोटिवेट करती रही है –
” सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं। ”
क्या यह सच है की सोना जितना तपता है उतनी ही निखार आती है ,लोग कहते हैं ,तुलना भी करते हैं
मुझे तो नही मालूम ,मेरी जानकारी के साथ उम्र भी कम है और तो और अनुभव भी —- मेरे जेहन में तो वही पंक्ति है ‘ शिवमंगल सुमन की —
“जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूंगा पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं।”
अगर आम इंसान की भी बाते करू तो वह भी , रोटी ,कपड़ा ,घर ,शानो शौकत और रॉब में रहता है क्या उसे यह नही लगता कि कुछ इससे ऊपर भी कुछ है जैसे मुंशी प्रेमचंद जी ने हमेशा ” मध्य वर्ग और निम्न वर्ग पर लिखा और सराहा है उन्होंने गोदान में गोबर का रॉब ,होरी की व्यथा तथा झुनिया इन दोनों के बीच पिसती ‘houswife’ का जिक्र किया , होरी भी तो अपने नजर में राजा ही था ‘ एक दम दिल का राजा ‘ और झुनिया उसकी रानी और उसका साम्राज्य चंद टुकड़ो में और एक गाय की अभिलाषा तक थी ।”
पांडव जब राजा थे ,वनवास धारण किया , और पुनः राजा बने । इनके बीच एक कॉमन बात सिर्फ ‘ बदला ही लेना था या हो सकता है धर्म की स्थापना हो जो श्री कृष्ण कहते हैं ।
इनकी जेहन में राजशाही थी ,खून भी था , और उसे पाने की तृप्ति भी थी ।
फिर मेरे जेहन में कहा से आगयी । शायद पूर्वजन्म , शायद संगत , शायद फिल्में …..हो सकता है …नही भी ….
पर तकलीफे लाजवाब है ।
मेरे जेहन में एक प्रश्न यह भी कहता है कि शायद जिस बादशाह को हम जानते हैं मैं उसकी बातें नही कर रहा — मैं उन तकलीफे को रेखांकित कर रहा हूँ जो उसे बनने में योगदान दिया ……केवल संघर्ष …ताप…तिरस्कार…. और जिल्लत …आदि आदि ।।।
चन्द्रगुप्त मौर्य साम्राज्य , सिंकदर दुनिया जितने वाला , दक्षिण की छोटी सी चोल जिसे मैं पर्यावरण में वहां की इकोटोंन , बफरजोन, और सबसे शक्तिशाली प्रजाति कहना पसंद करूंगा जिसने — दैत्यों के भांति साम्राज्यो को जीता ,उन्हें जौहरियों की तरह सजाया ।”
क्या तपने में इतनी ताकत है कि वह इंसान को समझदार और मजबूत बनाती है कि नही जो पाना है तो पाना है , आख़िर यह विजेता ही क्यो बादशाह कहलाते हैं , प्राचीन इतिहास में तो हारे हुए राजा या तो दास हुए या किसी प्रांत के मालिक ।
मेरा जेहन इस वक्त बहुत कुछ सोच रहा है कि क्या हारे हुए लोग बादशाह नही कहलाते …. आखिर ये होते कौन है ।
आधुनिक तकनीक और वैश्विक परिदृश्यो की तरफ आते है तो यह पता चलता है बादशाह एक सफल इंसान होते हैं , उनके पास अपने जीवन को जीने के सारे सुविधा होते हैं । शायद यह गलत नही होगा पर
मेरे जेहन में ये बाते क्यो आयी ।
मेरा मानना यह कि जीवन 0 से 100 तक कि लड़ाई है एक ऐसा कोई बिंदु है जिसके प्राप्ति के बाद इंसान धीरे – धीरे पतन की तरफ बढ़ता है जैसे अर्थव्यवस्था का कुजनेट वक्र —- एक सीमा तक अर्थव्यवस्था और बाजार का विकास उसके तदुपरांत उल्टे “U(यू)” की भांति कम होते जाना ।
लेकिन अच्छी सबसे बात यह है कि हमे बादशाह बनने की होड़ जिंदा रखनी चाहिए — ताकि यह सिद्ध होता रहे कि हम इस दुनिया मे मृत नही है गतिशील है कुछ करने के लिए ।
बादशाह तो सिर्फ एक टाइटिल है कुछ कर जाने के लिए ….
शायद किसी ने सोच कर मेरा नाम रखा था ….
Rohit ❤️