पतवार
आशा और निराशा की
बहती पुरबैया
कभी अविचल
कभी डगमग नैया
खड़ी बीच मँझधार
विविध विध्न,बहु बाधा
अशांत मन-सा
लहरों ने साधा
जाना,जो उस पार
मांझी,दृढ़ पकड़ पतवार
तज भय
कर निश्चय
ले निज हाथों में पतवार
मांझी,दृढ़ पकड़ पतवार
निशांत हो तो उषा है
हौसला जिजीविषा है
जलधि के अतल हृदय पर
ज्वार-भाटायें भरा है
इस भरे जलधार में
पतवार का ही आसरा है
कर्म ही एक आधार
मांझी,दृढ पकड़ पतवार।
-©नवल किशोर सिंह