पतझड़
भरी दोपहर में मुझ पर अँधेरा छा गया जैसे
मौसम-ए-बहार में ही पतझड़ आ गया जैसे।
ज़िन्दग़ी की शाख़ पर दो पत्ते थे बाकी
एक बे-रहम झोंका शाख़ हिला गया जैसे।
मैं खुदकों बड़ा ताक़तवर मानकर चला था
मेरी कमज़ोरियाँ मुझे वक़्त बता गया जैसे।
भरी दोपहर में मुझ पर अँधेरा छा गया जैसे
मौसम-ए-बहार में ही पतझड़ आ गया जैसे।
ज़िन्दग़ी की शाख़ पर दो पत्ते थे बाकी
एक बे-रहम झोंका शाख़ हिला गया जैसे।
मैं खुदकों बड़ा ताक़तवर मानकर चला था
मेरी कमज़ोरियाँ मुझे वक़्त बता गया जैसे।