पतझड़ की कैद में हूं जरा मौसम बदलने दो
पतझड़ की कैद में हूं,जरा मौसम बदलने दो,
अभी मूड नही है,जरा मूड को तो बदलने दो।
आऊंगी तुम्हारे ही पास,जरा सब्र तो रक्खो,
बेरुखी के मौसम को,जरा इश्क में बदलने दो।।
अभी कलियां खिली नही,उनको जरा खिलने दो,
अभी दो दिल मिले नही, उनको जरा मिलने दो।
अभी जल्दी भी क्या है,जरा तो सब्र तो रख्खो,
अभी मंद पवन चली है,उसे जरा तो चलने दो।।
अभी उपवन में बहार आई है उसे जरा महकने दो
अभी आमो में बौर आया है उसे जरा तो बढ़ने दो।
आम चूसने को मिलेंगे तुम्हे भी जरा सब्र तो रक्खो,
अभी तो यौवन आया है उसे जरा तो चहकने दो।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम