पतंग
क्या अर्थ तुम्हारी छटपटाहट का,
नहीं कर पाओगे कैद मुझे,
विचरण करूंगी नील गगन में,
उन्मुक्त अपने पंखों के दम पर,
ईश्वर ने दिए हैं पंख मुझे,
और ऊंची परवाज़ का हौंसला भी,
उसी परमात्मा ने बनाया मुझे ,
और रचना की तुम्हारी भी,
उसी अवनि पर उपजा अन्न,
तुमने खाया और मैंने भी,
उसी सरिता का जल ,
तुमने पिया और मैंने भी,
उसी धरा पर तुम्हारे पग,
वहीँ खड़ी हूँ मैं भी,
फिर तुम मुझसे श्रेष्ठ कैसे,
मैं तुम्हारे आधीन क्यों,
मान लो, नहीं नचा पाओगे ,
मुझे उँगलियों पर क्योंकि,
मैं ईश्वर की रचित कृति हूँ,
तुम्हारी बनायी पतंग नहीं।
……००……
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”