पतंग
डोर से नथी पतंग
डोलती रहती है
उंगलियो के इशारो पर
कन्नी ,मंझा ,ढील
इनमे उलझी
हवाओ के चक्कर काटती
डोर से नथी पतंग ….
इतराती इठलाती
पंछियो को भी चिढाती
जैसे पाया हो नव जीवन
यूँ फुले न समाती
डोर से नथी पतंग….
पर जब आसमान से
उतर के आती
गुमसुम गुमसुम
थकी थकी सी
किसी कोने में टंग जाती
डोर से नथी पतंग….