पतंग …घणाक्षरी
घनाक्षरी
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आकाश में उड़ी जाए
हवा के हिलोरे खाए
आगे -आगे बढ़ी जाए
पतंग दिवानी रे।
संक्राति संदेशा लाए
रितु बदलती जाए
सतरंगी छटा छाए
पतंग सुहानी रे।
धरा से गगन जाए
सबंध ये तो बताए
अकाश छू कर आए
पतंग मस्तानी रे।
खेल में जीना सिखाए
मेल -मिलाप बढ़ाए
संस्कृति दृढ़ बनाए
पतंग कहानी रे।
प्राचीन खेल ये भाए
हर किसी को लुभाए
अंबर चढ़ मुस्काए
करे मनमानी रे।