पढ़ना लिखना बहुत ज़रूरी
खेल कूद अच्छे लगते थे, पढ़ना तनिक न भाता था
बचपन में लगता पागलपन, जब कोई समझाता था
दूर पढ़ाई से रहता था, एक बड़ा नटखट बंदर
भरी हुई नस नस में केवल, शैतानी उसके अंदर
तभी परीक्षा में वह अक्सर ,जीरो अंडा पाता था
बचपन में लगता पागलपन, जब कोई समझाता था
तेज बहुत खरगोश बुद्धि में, समझ समझ कर पढ़ता था
समय सारिणी स्वयं बनाकर, काम हमेशा करता था
कक्षा में वह सब विषयों में, अव्वल नम्बर आता था
बचपन में लगता पागलपन,जब कोई समझाता था
तोता अच्छा था पढ़ने में ,रट्टा खूब लगाता था
और बिना सोचे समझे ही, बात सभी दोहराता था
इसीलिए औसत नम्बर से, पास सदा हो जाता था
बचपन में लगता पागलपन, जब कोई समझाता था
बड़े हुये खरगोश बन गया, एक बड़ा काबिल अफसर
क्लर्क बन गया रट्टू तोता,जैसे तैसे घिस घिसकर
लेकिन नौकर बनकर बंदर, अब सबसे शर्माता था
बचपन में लगता पागलपन, जब कोई समझाता था
समय गवाने की कीमतअब, समझ गया नटखट बंदर
मारा मारा सा फिरता था , आफिस में अंदर बाहर
पढ़ना लिखना बहुत ज़रूरी, अब सबको बतलाता था
बचपन में लगता पागलपन, जब कोई समझाता था
21-12-2022
डॉ अर्चना गुप्ता