पढ़ते है एहसासों को लफ्जो की जुबानी…
पढ़ते है एहसासों को लफ्जो की जुबानी…
दिल की अलमारी खोली निकली कुछ चीज़े पुरानी,
एक गांव मेरा पुराना ,मेरा एक शहर प्यार की यादों में लिपटा मिला,
एक चाय वो कॉलेज के कैंटीन की अभी भी गुनगुनी सी मिली,
वो दोस्तो का शोर भी भरपूर मिला ,
एक दो अफ़सोस एक दो खिल्ली आज भी मेरी अलमारी से गूंजती मिली,
एक दो आंसू दीदी की विदाई पर जो चोरी से बहाए थे वो अभी भी मेरी अलमारी में नम मिले,
एक गुल्लक जो भाई के साथ छुपाई थी वो ,उसके चंद सिक्के अभी रखे है अलमारी की तह में,
एक जींस पहली,एक शर्ट पुरानी सी जिस पर कुछ कार्टून कुछ स्टिकर चिपकाए थे आज भी झांकती एक कोने से,
कुछ खत पुराने,कुछ कार्ड एक डायरी जो मेरी अमानत थी किसी जमाने में,वो भी मिली रखी अलमारी के एक तहखाने में,
एक माउथऑर्गन जो कभी होठों पे सजा रहता था वो भी मिला मुझे अलमारी के ख़ज़ाने से,
कुछ सूखे फूल भी मेरी अलमारी को महका रहे थे वो भी सजे हैं,
न जाने कितने सपनों से भरी है अलमारी मेरी ,न जाने कितने ख़ज़ाने छुपे हैं मेरी अलमारी में,,
आज खोली अलमारी वो यादों वाली,…….