पड़ाव जिन्दगी के
गुजर रही है
जिन्दगी होले होले
कभी रफ़्तार
तो कभी धीमे धीमे
कभी अपने
तो कभी हुए पराये
उम्र की दहलीज
जिन्दगी की
खत्म होती लीज
है ये एक पड़ाव
जिन्दगी का
रहे न रहे कल
करे न करे याद कोई
होता खत्म सफ़र
एक शून्य
विकट भयावह
धू धू जलती चिता
अन्तिम पड़ाव
जिन्दगी का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल