पटाखों सी खोखली जिंदगी
**** पटाखों सी खोखली जिन्दगी ***
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पटाखों सी खोखली हो गई है जिन्दगी
फुलझड़ियों सी बुझती जलती है जिंदगी
पटाखे बजते ही गर्जन कर देते हैं भारी
पर पल में राख सी हो जाती है जिन्दगी
चमकती फुलझड़ियाँ रोशनी करती कम
उम्मीदे दिल में जैसे जगा जाती जिन्दगी
खुशी के घी के दिए जलाते रहते अक्सर
दीपक के तले अन्धेरों जैसी है जिन्दगी
बेशक जी भर के मिठाइयाँ बाँट ले हम
पर आँवले के जैसे कड़वी होती जिन्दगी
विश्वासों पर होते रहते आत्मघाती हमले
मुँह में राम बगल में छूरी सी है जिन्दगी
मनसी क्या फायदा उपासना अर्चना का
अगरबत्तियों सी बुझती रहती है जिन्दगी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)