पटाक्षेप
अपने लहजे की छेनी से
मैंने गढ़े कुछ देवता थे कल
अपने लफ्जों के कौशल से
सींचा था मैंने गंगा जल
एक दिन अचानक वह किरदार
न जाने कहां से आ पहुंचा
कपट भरी अपनी करतूतों से
गुलशन को कर दिया विकल
कोशिश बहुत की मिलकर सबने
गुलशन को आंच ना आ जाएं
बरसों बाद आज मिले हम सब
मिलकर फिर ना बिछड़ जाएं
अपनी जिद की खातिर उसने
आपस में सबको लड़ा डाला
बिखर गया तिनका तिनका
शायद फिर एक ना हो पाएं
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश