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17 May 2024 · 1 min read

पटाक्षेप

अपने लहजे की छेनी से
मैंने गढ़े कुछ देवता थे कल
अपने लफ्जों के कौशल से
सींचा था मैंने गंगा जल
एक दिन अचानक वह किरदार
न जाने कहां से आ पहुंचा
कपट भरी अपनी करतूतों से
गुलशन को कर दिया विकल

कोशिश बहुत की मिलकर सबने
गुलशन को आंच ना आ जाएं
बरसों बाद आज मिले हम सब
मिलकर फिर ना बिछड़ जाएं
अपनी जिद की खातिर उसने
आपस में सबको लड़ा डाला
बिखर गया तिनका तिनका
शायद फिर एक ना हो पाएं

इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

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