पटल समीक्षा 222 वीं दिनांक 28-6-2021
220 -आज की #समीक्षा
समीक्षक – राजीव नामदेव राना लिधौरी’
#जय_बुंदेली_साहित्य_समूह
दिन- सोमवार *दिनांक 28-6-2021
*बिषय- “डुबरी” (बुंदेली दोहा लेखन)
आज पटल पै डुबरी बिषय पै दोहा लेखन कार्यशाला हती।आज जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो। नोने दोहा रचे बधाई।
आज सबसें पैला श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा ने अपने 5 नोने दोहा पटल पर रखे- और दौहों में सबरे बुंदेली व्यंजन पटल पै परोस दय श्रेष्ठ दोहन के लाने बधाई ।
डुबरी मुरका अरु लटा,मौवा बिरचुन बेर।
कौंइ फरा अरु महेरी,खाखा होबें शेर।।
डुबरी में डोबर फरा,कारी मिर्च महान।
गरी चिरोंजी मखाने ,बना देत हैं शान।।
2 श्री प्रदीप खरे,’मंजुल’ टीकमगढ़ जू ने दोहो में बढ़िया हास्य का प्रयोग किया है। बधाई।
डुबरी सी फदकत रबै,थूतर रही फुलाय।
गटा लटा से काढ़बै, गरिया मोय बुलाय।।
नाम लटा, डुबरी सुनत, मौ में पानी आय।
एक बेर जो खात है, बेर-बेर बौ खाय।।
3 श्री शोभारामदाँगी जू नंदनवारा कै रय कै बसकारे में डुबरी बनत है जीके खाबे कौ मजा ही कछू और है। बधाई नोने दोहे रचे।
मौका डुबरी कौ यह, बसकारें में होय ।
चना बनफरा डालकैं, यह बनाय जो कोय ।।
डुबरी खायें जो सदां, पाचन क्रिया भाय ।
रोग -दोग व्यापैं नहीं, स्वस्थ सदा तन राय ।।
4 अशोक पटसारिया नादान लिधौरा से लिखत है कै आज के मोडन खों पिज्जा बर्गर भाउत है व उने डुबरी नई पुसात। सासी कै रय भैया । बधाई नोने दोहा रचे है।
पिज़्ज़ा बर्गर माँगतइ,ऐसी पजी लडेर।
डुबरी मुरका लटा,कांकौ बिरचुन बेर।।
मउआ काटे रोड के, भट्टा लगे हजार।
अब डुबरी कां सें बनत,भैया करौ विचार।।
5 श्री हरिराम तिवारी मराज खरगापुर से बता रय कै ईमे का का डरत है। नोने दोहा रचे बधाई।
मीठे मउंअन सें बनी, डुबरी,है रसदार।
भोंतउं,नौंनी,लगतहै,गरी चिरोंजी डार।
होत भुंसरां खांय जो, गर्मी सब छट जात।
डुबरी जिन्ने खाई नहिं,बे खावे ललचात।।
6 श्री परम लाल तिवारी, खजुराहो लिखत है कै डुबरी पैले सब घरन में बनत हती और लोग टाथी भर भर खातते। बढ़िया दोहे रचे है बधाई।
पैले सबके बनत ती,डुबरी सदा सुकाल।
टाढी भर सब खात ते,बूढे जुआन बाल।।
डुबरी की सोंधी महक,दौरे तक लौ जात।
सतुआ मिलाय सान कै,दद्दा मजे सै खात।।
7 श्री अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा से लिखत है कै बोनी के टैम पै डुबरी बनत है। नोनो दोहा लिखो।
बोनी के दिन आ गए,अब डुबरी बनबाओ।
ढुलकी-पेटी हेर खे,खूब ददरिया गाओ।।
8 नीता जी श्रीवास्तव रायपुर परदेश में रै कै भी डुबरी सतुआ भूली नइयां ऊनको जी जै सब खावे ललचात रय। उमदा दोहे है बधाई।
डुबरी सतुआ सँग हमें , बिरचुन सोऊ भाय |
दूर देस में आजकल, जी मोरो ललचाय ||
फीको छप्पन भोग हैं , लड़ुआ, लटा जो भाय |
भौजाई से के दियो, डुबरी सोउ बनाय ||
*9- श्री सरस कुमार दोह खरगापुर से लय रय कै आज भी गांवन में दादा की बनी डुबरी जब नाती पोते खात है। अच्छे दोहे है बधाई।
बुढ़े पुराने के गये, पेला के पकवान ।
डुबरी, सतुआ औ लटा, में होत हती जान।।
जौवन तन बूढ़े भये, डुबरी रइ उफनाय।
नाती पोता खा रये, दादा गजब बनाय ।।
10 श्री अरविन्द श्रीवास्तव भोपाल से कत है कै डुबरी को भौत नाव सुनो है पै भोपाल में किते खावे धरी। बहुत सुन्दर लेखन बधाई।
बड़ौ नाव डुबरी सुनो, स्वाद कभउँ नइँ पाव।
इतनी नौनी होत तौ, जीकैं बनै खुवाव ।।
सबके दोहा जो पढ़े, मौं में पानी आव,
डुबरी तौ खानैं परै, बढ़ गव मन में चाव ।
11 डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल जी लिखतीं हैं कै
डुबरी महुअन की बनै, सबखों भोतइ भाय।
बब्बा कक्का चाव सें, सूट सूट के खाय।।
बनो महेरो रात के, डुबरी भोर बनाइ।
ऐसे व्यंजन आय जे, कितउ मिलै ना भाइ।।
12 श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.कत है कै हमने सोउ अबे तक नइ खाई जा डुबरी। आजकाल की बहू बनावो नइ जानत है। निचाट सासी कै रय। बधाई।
डुबरी की चर्चा रये,बुंदेली पकवान।
खाई अब तक है नईं,हमें न ऊको ज्ञान।।
डुबरी अब नइ जानती, नईं बहू घर दुआंय।
सुन-सुन घूंघट में खडी़, बस केबल मुस्कांय।।
13 श्री कल्याण दास साहू “पोषक” जू पृथ्वीपुर से भौत नोने दोहा रचत है कै रय कै पैला डुबरी से सत्कार होत हतो। बधाई।
पैलाँ मउआ ही हते , सबके पालनहार ।
नातेदारन कौ भओ , डुबरी सें सत्कार ।।
मउआ फरा किनावनें , पानी संग चुराँय ।
जब डुबरी बन जाय तौ , सिरा-सिरा कें खाँय ।।
14 **राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़* से कै रम कै बूढन खौ डुबरी भौत भाउत है वे बड़े चाव सें खात है।
डुबरी,मुरका अरु लता,बुंदेलों की शान।
बिजी,बेर, महुआ,चना,बुंदेली पहचान।।
डुबरी डुक्को खात है,बड़े चाव से आज।
खातन ताकत मिल गयी,कर रइ घर के काज।।
***
15 श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष जू टीकमगढ़ लिखत है कै- डुबरी भौत खासमखास होत है। नौने दोहे लिखे है बधाई।
मउआ मेबा होत हैं,भौतइ भरी मिठास।
जिन सें जा डुबरी बनीं,खूबइ खासमखास।।
जब तक बउआ जू रईं,रुच रुच रोज बनाइ।
कांसे की टाठी भरी ,सिरा सिरा कें खाइ।।
16 श्री संजय श्रीवास्तव, मवई दिल्ली से़ लिख रय कै डुबरी जब चूल्हे पै चढत है तो ऊकी महक से घर महक जात है। बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
डुबरी चूले पे चढ़ी, महक उठी चहुँ ओर।
हूँक भूँख की उठ रई, कूँदे लड़कपचोर।।
महुआ, गुली, गुलेंद्रो, अरु डुबरी की खीर।
मुरका, पउआ अरु लटा, दै महुआ धर धीर।।
17 श्री राज गोस्वामी जी दतिया से डुबरी कौं स्वर्ण भस्म जैसों कीमती है। अच्छा लेखन है बधाई।
स्वर्ण भसम से कीमती डुबरी है इक चीज । जा खो खा फूलै फलै रहै न मन मे खीज ।।
मते मते से लगत है डुबरी खाके लोग । लटा महेरी संग मे लगत पृभू को भोग ।।
डुबरी मीठी सी लगत है मिठाइ कौ रूप । जंगल मे मंगलनुमा मिलत गाव भरपूर ।।
18 श्री वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया जू टीकमगढ़ से कत है कै डुबरी गरीबन कौ मेवा है। बधाई नोने दोहा रचे।
डुबरी खा कें काड़ दय , भैया ने दिन चार।
बहुत गरीबी देश में , मदद करे सरकार।।
मउंअन की डुबरी बनत , उर बटरा की दार।
बड़े प्रेम सें खात हैं , गांवन में परिवार।।
19 श्री डी.पी .शुक्ला ,,सरस,, टीकमगढ से कै रय कै- अब वे म उआ के पेड़ नइ बचे, और जोन बजे सो ऊसें दारू बना लेत है। साइ कैरय। बधाई।
मउअन के विराने परे,दारू है दम देत ।।
डुबरी के लाले परे,भऐ ना हम सचेत ।।
अब ना बे मउवा बचे,मिठवाँ टपकट फूल ।।
डुबरी पकवान न मिलै, मन में रय वे झूल ।।
20 बडेदा श्री रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ जू ने सोउ नोने दोहा रचे है। बता रय कै डुबरी खावै से खून बढत है। बधाई भौत नोने दोहे लिखे है।
डुबरी मउआ की बनी,फरा डरे हैं ऐंन।
दद्दा,बब्बा, बाइ, बउ,खा रय भैया-बैंन।।
छोटे मउआ चाउनै,और फरा खों चून।
संग चिरोंजी हो डरी,डुबरी बढ़ाय खून।।
21 श्री मनोज कुमार सोनी रामटौरिया ने डुबरी को ब्याव कर रओ है गजब की कल्पना करी बधाई।
डुवरी लाँगा में सजी,नौंनीं खूब दिखात,
सतुआ जू दूला बने,लैकें आय बरात।
फुआ महेरी माँग भरी,बरा नें जोरी गाँठ।
डुवरी के फूपा फरा,फंदकत भरें कुलाँट।
नेंगचार करवारई,आज खीर भौजाई।
पेडा़ मम्मा आन कें,डुवरी बिदा कराई।।
22 श्री रामानंद पाठक नंद नैगुवां ने उमदा दोहे रचे बधाई।
मउवा की डुबरी बनें,वा में रहत मिठास।
बुन्देली बिन्जन बनौ,बनबै जेठन मास।।
मउवा पानी में फुला, दय हडिया में डार।
चना चिरौंजी गरि घनी, डुबरी भइ तैयार।।
23 श्री राम कुमार जू शुक्ल चन्देेरा से लिखत है कै मउआ अब दारू बनावे के लाने बिक जात है अब डुबरी को बनात। बढ़िया दोहे है बधाई।
डुबरी के दिन कढ़ गए ,मउवन कौभव नास।
दारू खातिर बिक रये,नइँ लैतै वे साँस।।
लटा महेरी खात हैं,बूरौ बरा सुहात।
डुबरी से ना नोनो लगै,जी के जो मन भात ।।
24 श्री एस आर सरल जू टीकमगढ़ ने लिखों के डुबरी मीठी लगत है सभ ई जने भौत चाव सें खात है। बढ़िया लिखा है बधाई।
डुबरी मीठी लगत है,बड़े चाव सै खात।
एक घरै डुबरी बनै,पुरवा भर महकात।।
ईरां सें आज पटल पै भौत दिना बाद दो दर्जन दोहाकारों 24कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से डुबरी की मिठास घोली है। सबई नेनो लिखों है सभई दोहाकारों को बधाई।
? जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड?
220 -आज की समीक्षा
समीक्षक – राजीव नामदेव राना लिधौरी’
दिन- सोमवार *दिनांक 28-6-2021
*बिषय- “डुबरी” (बुंदेली दोहा लेखन)
आज पटल पै डुबरी बिषय पै दोहा लेखन कार्यशाला हती।आज जितैक जनन नें लिखौ उने हम बधाई देत है कै कम सें कम नये बिषय पै नओ लिखवे की कोसिस तो करी है,भौत नोनों लगो। नोने दोहा रचे बधाई।
आज सबसें पैला श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा ने अपने 5 नोने दोहा पटल पर रखे- और दौहों में सबरे बुंदेली व्यंजन पटल पै परोस दय श्रेष्ठ दोहन के लाने बधाई ।
डुबरी मुरका अरु लटा,मौवा बिरचुन बेर।
कौंइ फरा अरु महेरी,खाखा होबें शेर।।
डुबरी में डोबर फरा,कारी मिर्च महान।
गरी चिरोंजी मखाने ,बना देत हैं शान।।
2 श्री प्रदीप खरे,’मंजुल’ टीकमगढ़ जू ने दोहो में बढ़िया हास्य का प्रयोग किया है। बधाई।
डुबरी सी फदकत रबै,थूतर रही फुलाय।
गटा लटा से काढ़बै, गरिया मोय बुलाय।।
नाम लटा, डुबरी सुनत, मौ में पानी आय।
एक बेर जो खात है, बेर-बेर बौ खाय।।
3 श्री शोभारामदाँगी जू नंदनवारा कै रय कै बसकारे में डुबरी बनत है जीके खाबे कौ मजा ही कछू और है। बधाई नोने दोहे रचे।
मौका डुबरी कौ यह, बसकारें में होय ।
चना बनफरा डालकैं, यह बनाय जो कोय ।।
डुबरी खायें जो सदां, पाचन क्रिया भाय ।
रोग -दोग व्यापैं नहीं, स्वस्थ सदा तन राय ।।
4 अशोक पटसारिया नादान लिधौरा से लिखत है कै आज के मोडन खों पिज्जा बर्गर भाउत है व उने डुबरी नई पुसात। सासी कै रय भैया । बधाई नोने दोहा रचे है।
पिज़्ज़ा बर्गर माँगतइ,ऐसी पजी लडेर।
डुबरी मुरका लटा,कांकौ बिरचुन बेर।।
मउआ काटे रोड के, भट्टा लगे हजार।
अब डुबरी कां सें बनत,भैया करौ विचार।।
5 श्री हरिराम तिवारी मराज खरगापुर से बता रय कै ईमे का का डरत है। नोने दोहा रचे बधाई।
मीठे मउंअन सें बनी, डुबरी,है रसदार।
भोंतउं,नौंनी,लगतहै,गरी चिरोंजी डार।
होत भुंसरां खांय जो, गर्मी सब छट जात।
डुबरी जिन्ने खाई नहिं,बे खावे ललचात।।
6 श्री परम लाल तिवारी, खजुराहो लिखत है कै डुबरी पैले सब घरन में बनत हती और लोग टाथी भर भर खातते। बढ़िया दोहे रचे है बधाई।
पैले सबके बनत ती,डुबरी सदा सुकाल।
टाढी भर सब खात ते,बूढे जुआन बाल।।
डुबरी की सोंधी महक,दौरे तक लौ जात।
सतुआ मिलाय सान कै,दद्दा मजे सै खात।।
7 श्री अवधेश तिवारी, छिंदवाड़ा से लिखत है कै बोनी के टैम पै डुबरी बनत है। नोनो दोहा लिखो।
बोनी के दिन आ गए,अब डुबरी बनबाओ।
ढुलकी-पेटी हेर खे,खूब ददरिया गाओ।।
8 नीता जी श्रीवास्तव रायपुर परदेश में रै कै भी डुबरी सतुआ भूली नइयां ऊनको जी जै सब खावे ललचात रय। उमदा दोहे है बधाई।
डुबरी सतुआ सँग हमें , बिरचुन सोऊ भाय |
दूर देस में आजकल, जी मोरो ललचाय ||
फीको छप्पन भोग हैं , लड़ुआ, लटा जो भाय |
भौजाई से के दियो, डुबरी सोउ बनाय ||
*9- श्री सरस कुमार दोह खरगापुर से लय रय कै आज भी गांवन में दादा की बनी डुबरी जब नाती पोते खात है। अच्छे दोहे है बधाई।
बुढ़े पुराने के गये, पेला के पकवान ।
डुबरी, सतुआ औ लटा, में होत हती जान।।
जौवन तन बूढ़े भये, डुबरी रइ उफनाय।
नाती पोता खा रये, दादा गजब बनाय ।।
10 श्री अरविन्द श्रीवास्तव भोपाल से कत है कै डुबरी को भौत नाव सुनो है पै भोपाल में किते खावे धरी। बहुत सुन्दर लेखन बधाई।
बड़ौ नाव डुबरी सुनो, स्वाद कभउँ नइँ पाव।
इतनी नौनी होत तौ, जीकैं बनै खुवाव ।।
सबके दोहा जो पढ़े, मौं में पानी आव,
डुबरी तौ खानैं परै, बढ़ गव मन में चाव ।
11 डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल जी लिखतीं हैं कै
डुबरी महुअन की बनै, सबखों भोतइ भाय।
बब्बा कक्का चाव सें, सूट सूट के खाय।।
बनो महेरो रात के, डुबरी भोर बनाइ।
ऐसे व्यंजन आय जे, कितउ मिलै ना भाइ।।
12 श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.कत है कै हमने सोउ अबे तक नइ खाई जा डुबरी। आजकाल की बहू बनावो नइ जानत है। निचाट सासी कै रय। बधाई।
डुबरी की चर्चा रये,बुंदेली पकवान।
खाई अब तक है नईं,हमें न ऊको ज्ञान।।
डुबरी अब नइ जानती, नईं बहू घर दुआंय।
सुन-सुन घूंघट में खडी़, बस केबल मुस्कांय।।
13 श्री कल्याण दास साहू “पोषक” जू पृथ्वीपुर से भौत नोने दोहा रचत है कै रय कै पैला डुबरी से सत्कार होत हतो। बधाई।
पैलाँ मउआ ही हते , सबके पालनहार ।
नातेदारन कौ भओ , डुबरी सें सत्कार ।।
मउआ फरा किनावनें , पानी संग चुराँय ।
जब डुबरी बन जाय तौ , सिरा-सिरा कें खाँय ।।
14 **राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़* से कै रम कै बूढन खौ डुबरी भौत भाउत है वे बड़े चाव सें खात है।
डुबरी,मुरका अरु लता,बुंदेलों की शान।
बिजी,बेर, महुआ,चना,बुंदेली पहचान।।
डुबरी डुक्को खात है,बड़े चाव से आज।
खातन ताकत मिल गयी,कर रइ घर के काज।।
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15 श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष जू टीकमगढ़ लिखत है कै- डुबरी भौत खासमखास होत है। नौने दोहे लिखे है बधाई।
मउआ मेबा होत हैं,भौतइ भरी मिठास।
जिन सें जा डुबरी बनीं,खूबइ खासमखास।।
जब तक बउआ जू रईं,रुच रुच रोज बनाइ।
कांसे की टाठी भरी ,सिरा सिरा कें खाइ।।
16 श्री संजय श्रीवास्तव, मवई दिल्ली से़ लिख रय कै डुबरी जब चूल्हे पै चढत है तो ऊकी महक से घर महक जात है। बढ़िया दोहे लिखे है बधाई।
डुबरी चूले पे चढ़ी, महक उठी चहुँ ओर।
हूँक भूँख की उठ रई, कूँदे लड़कपचोर।।
महुआ, गुली, गुलेंद्रो, अरु डुबरी की खीर।
मुरका, पउआ अरु लटा, दै महुआ धर धीर।।
17 श्री राज गोस्वामी जी दतिया से डुबरी कौं स्वर्ण भस्म जैसों कीमती है। अच्छा लेखन है बधाई।
स्वर्ण भसम से कीमती डुबरी है इक चीज । जा खो खा फूलै फलै रहै न मन मे खीज ।।
मते मते से लगत है डुबरी खाके लोग । लटा महेरी संग मे लगत पृभू को भोग ।।
डुबरी मीठी सी लगत है मिठाइ कौ रूप । जंगल मे मंगलनुमा मिलत गाव भरपूर ।।
18 श्री वीरेन्द्र कुमार चंसौरिया जू टीकमगढ़ से कत है कै डुबरी गरीबन कौ मेवा है। बधाई नोने दोहा रचे।
डुबरी खा कें काड़ दय , भैया ने दिन चार।
बहुत गरीबी देश में , मदद करे सरकार।।
मउंअन की डुबरी बनत , उर बटरा की दार।
बड़े प्रेम सें खात हैं , गांवन में परिवार।।
19 श्री डी.पी .शुक्ला ,,सरस,, टीकमगढ से कै रय कै- अब वे म उआ के पेड़ नइ बचे, और जोन बजे सो ऊसें दारू बना लेत है। साइ कैरय। बधाई।
मउअन के विराने परे,दारू है दम देत ।।
डुबरी के लाले परे,भऐ ना हम सचेत ।।
अब ना बे मउवा बचे,मिठवाँ टपकट फूल ।।
डुबरी पकवान न मिलै, मन में रय वे झूल ।।
20 बडेदा श्री रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़ जू ने सोउ नोने दोहा रचे है। बता रय कै डुबरी खावै से खून बढत है। बधाई भौत नोने दोहे लिखे है।
डुबरी मउआ की बनी,फरा डरे हैं ऐंन।
दद्दा,बब्बा, बाइ, बउ,खा रय भैया-बैंन।।
छोटे मउआ चाउनै,और फरा खों चून।
संग चिरोंजी हो डरी,डुबरी बढ़ाय खून।।
21 श्री मनोज कुमार सोनी रामटौरिया ने डुबरी को ब्याव कर रओ है गजब की कल्पना करी बधाई।
डुवरी लाँगा में सजी,नौंनीं खूब दिखात,
सतुआ जू दूला बने,लैकें आय बरात।
फुआ महेरी माँग भरी,बरा नें जोरी गाँठ।
डुवरी के फूपा फरा,फंदकत भरें कुलाँट।
नेंगचार करवारई,आज खीर भौजाई।
पेडा़ मम्मा आन कें,डुवरी बिदा कराई।।
22 श्री रामानंद पाठक नंद नैगुवां ने उमदा दोहे रचे बधाई।
मउवा की डुबरी बनें,वा में रहत मिठास।
बुन्देली बिन्जन बनौ,बनबै जेठन मास।।
मउवा पानी में फुला, दय हडिया में डार।
चना चिरौंजी गरि घनी, डुबरी भइ तैयार।।
23 श्री राम कुमार जू शुक्ल चन्देेरा से लिखत है कै मउआ अब दारू बनावे के लाने बिक जात है अब डुबरी को बनात। बढ़िया दोहे है बधाई।
डुबरी के दिन कढ़ गए ,मउवन कौभव नास।
दारू खातिर बिक रये,नइँ लैतै वे साँस।।
लटा महेरी खात हैं,बूरौ बरा सुहात।
डुबरी से ना नोनो लगै,जी के जो मन भात ।।
24 श्री एस आर सरल जू टीकमगढ़ ने लिखों के डुबरी मीठी लगत है सभ ई जने भौत चाव सें खात है। बढ़िया लिखा है बधाई।
डुबरी मीठी लगत है,बड़े चाव सै खात।
एक घरै डुबरी बनै,पुरवा भर महकात।।
ईरां सें आज पटल पै भौत दिना बाद दो दर्जन दोहाकारों 24कवियन ने अपने दोहा अपने अपने ढंग से डुबरी की मिठास घोली है। सबई नेनो लिखों है सभई दोहाकारों को बधाई।
? जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड?
समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)
एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)
एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़