पटल समीक्षा- समीक्षक- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
239वीं पटल समीक्षा दिनांक-29-7-2021
बिषय-हिंदी में “स्वतंत्र पद्य लेखन”
आज पटल पर हिंदी में *स्वतंत्र पद्य लेखन था। सभी साथियों ने शानदार रचनाएं पोस्ट की है ग़ज़ल, गीत, कविता, चौकडिया आदि विभिन्न विद्याओं में रस वर्षा हुई है। सभी साथियों को हार्दिक बधाई।
आज सबसे पहले पटल पर 1 श्री अशोक पटसारिया जी ने किसान और मजदूरों की पीड़ा को बहुत ही सूक्ष्म व मार्मिक वर्णन पेश किया है- बधाई।
कड़ी धूप में कठिन परिश्रम,श्वेद और शोणित का मिश्रण।
और कड़ाके की शर्दी मैं,रात रात भर खेती सिंचन।।
क्या तुमने भी कभी आज तक,इतना काम किया है।
2 राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़ ने एक शानदार ग़ज़ल कही ग़जल के शेरों में प्रेम और व्यंग्य का मिश्रण था।
जो रहीम और राम हो गये।उनके ऊंचे नाम हो गये।।
प्यार को जिन्होंने समझा। वो ही यहां घनश्याम हो गये।।
देखो नेता बनते ही वो।कितने ऊंचे दाम हो गये।।
3 श्री मनोज कुमार सोनी रामटौरिया ने भी एक ग़ज़ल पेश की- ये शेर अच्छे लगे। बधाई।
आज तक मेरा कभी मेरा हुआ ना।कौन जाने इश्क का दस्तूर क्या है।
स्वाद तो जो भी है माँ के हाथ में है। रोटि सूखी और मोती चूर क्या है।।
4 श्री एस आर सरल जी टीकमगढ़ ने मतविले बादलों पर बेहतरीन क़लम चलायी है। बधाई।
मचले मस्ती में मतवाले,मन मोहक मड़राये हैं।
सावन मास लगे अँधयारे काले बादल छाये हैं।।,
5 श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.,बडागांव झांसी उप्र.से अपनी ग़जल में जिंदगी का फलसफा लिख रहे हैं। बधाई।
एक जल का बुलबुला सा तू यहाँ। सिर्फ आना और जाना जिंदगी।।
रख वफा ईमानदारी नेकियाँ, प्यार अपना तुम निभाना जिंदगी।।
6 मनोज कुमार ,उत्तर प्रदेश गोंडा से प्यार और वफ़ा की बातें कर रहे है। बधाई।
मुझे प्यार करना उसने सिखा दिया।
दौलत के चाह में,अपनी आंखो के शूरमा बना लिया।
हम निकल नहीं पाए, प्रेम के महा जाल में।
जला कर ख़ाक कर दिया मुझे, नया साल में।
7 श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव, गाडरवारा, म.प्र बता रहे है कि रात क्यों होती है। अच्छी रचना है बधाई।
रात इसीलिए होती है कि
हम दिनभर के थके हारे आराम कर लें
रात इसीलिए भी होती है कि बतिया लें
अपने परिजनों से,पड़ोसियों से,।।
8 डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल से पिता पर केंद्रित सुंदर भावों से भरी कविता पेश की है। उन्हें बधाई।
पिता होता है जीवन की नींव जानो।
वह एक उम्मीद है इस सत्य को मानो।।
तेरे लिए सदा सभी सुविधा जुटाई थीं।
जीवन की सारी खुशियां तुझ पर लुटाई थीं।।
9 जनक कु.सिंह बाघेल भोपाल से बहुत दर्शनिक अंदाज में अपनी रचना प्रस्तुत की है। बधाई।
सृष्टा ने हर प्राणी को, बल बुद्धि बहुत दिया।
रक्त वाहिनी , स्वांस सभी को, एक समान दिया।।
अधिक विवेक दिया मानव को , चाहे क्षितिज उड़े।
धरती अम्बर मंगल तक सब उसने माप लिया।।
10 श्री किशन तिवारी भोपाल बहुत बढ़िया ग़ज़लें लिखते हैं एक बहुत छोटी बहर में यह ग़ज़ल कही है। बधाई।
ग़म का इक सागर तो है।फिर भी तू ऊपर तो है।।
तूफ़ानों से टकराती।इक कश्ती जर्जर तो है।।
कुछ भी पास नहीं मेरे।पर ढाई आखर तो है।।
11 *डॉ सुशील शर्मा जी गाडरवाड़ा से महाश्रृंगार छंद में रचना पेश कर रहे है। बधाई।
श्याम बस तुम ही मेरे मीत ,
तुम्हीं से लागी मन की प्रीत।
करूँ मैं तेरा ही गुणगान ,
हार भी मुझको लगती जीत।।
12 प्रदीप खरे, मंजुल,टीकमगढ़ मप्र से बहुत मधुर गीत लिखा है भारत माता का दर्द बयां कर रहे है। बधाई।
लोकतंत्र में लोक बिलखता,सुनने वाला कोई नहीं।
बिलख रही है भारत माता,चैन से अब तक सोई नहीं।।
13 श्री अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल ने धरती मां के बारे में लिखा है कि मैं ही इस संसार की धूरी हूं। बढ़िया चिंतन है।बधाई ।
मैं ही इस संसार की धुरी हूँ,/परमपिता ने
इसके केन्द्र में रखा है मुझे,
मेरे होने पर निर्भर है
समस्त स्थूल और चेतन जगत ।
14 श्री कल्याण दास साहू “पोषक”,पृथ्वीपुर पावस का सुंदर वर्णन कर रहे हैं बधाई।
पावस की रिमझिम झडी़ , खुशहाली बरसाय ।
पशु – पक्षी होते मगन , हरियाली छा जाय ।।
बरखा की बूँदें निरख , चातक मन हरषाय ।
शुभ स्वाती नक्षत्र में , मन की प्यास बुझाय ।।
15 श्री रविन्द्र यादव जबलपुर से हार-जीत का गणित समझा रहे हैं।
जीतते रहो तुम, हारते रहो तुम !
वो सुनता है, उसको पुकारते रहो तुम !!
सच-ओ-धरम ही जिताते हैं सबको,
सच-ओ-धरम पर सब हारते रहो तुम !!
16 श्री गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा टीकमगढ़ चौकडियां में किसानों की दशा व्यक्त कर रहे है। बधाई।
किसान नीचेको गड़रये,भाव जे सबके बड़रये ।
डीजल पेट्रोल को देखो ,जा आकाश को चड़रये।।
17 श्री जयहिन्द सिंह जयहिन्द,पलेरा दाऊ ने टीकमगढ़ जिले के दर्शनीय स्थलों की सुंदर झांकी प्रस्तुत की है। बहुत बढ़िया रचना है बरम्बार बधाई दाऊ।
कुण्डेश्वर है धाम यहां का,बाग बगीचे न्यारे हैं।
वन संग ऊषा कुण्ड जामफल,बाग यहाँ के सारे हैं।
बोतल हाउस कृषि फार्म,सबकी आँखों के तारे हैं।।
बरीघाट की शोभा न्यारी,महिमा अपरंपार है।दर्शनीय…….।।
18 श्री हरिराम तिवारी ‘हरि’,खरगापुर से बारिश का मनोरम वर्णन कर रहे हैं बधाई।
रिमझिम बुॅंदियां झर रहीं, भींज रहे दोउ आज।
झूलन रस में मगन हैं, रसमय सकल समाज।।
नीलांबर से राधिका, पीतांबर से श्याम।
जल कण पौंछें परस्पर, शोभा है अभिराम।।
19 श्री अभिनन्दन गोइल, इंदौर- से पंच तत्वों की सुंदर चिंतन और व्याख्या कर रहे हैं। बधाई
सृष्टि रची है पंचतत्व से,अद्भुत है रचने बाला।
प्रकृति नटी का नाट्य निरंतर,उसकी ही नाटक शाला।।
क्षेत्र अनंत असीमित जिसका,है आकाश लोक-व्यापी।
ऊर्जा इसमें विचरण करती , ना कोई आपाधापी।।
इस प्रकाय से आज पटल पै 19 कवियों ने अपने अपने ढंग विभिन्न रसों और बिषय पर कविताएं पठल पर रखी सभी बहुत बढ़िया लगी, सभी रचनाकारों को बहुत बहुत धन्यवाद।
?*जय बुंदेली, जय बुन्देलखण्ड*?
समीक्षक- ✍️राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)
*एडमिन- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़#