पटकथा लिखने पधारो फिर से भूमि हे हरी।
एक गीत समर्पित ❤️
पटकथा लिखने पधारो फिर से भूमि हे हरी।
काल की काली घनेरी
रो रही तुमको पुकारी।
और रण चंडी भी जागी
बोलती केशव मुरारी।
पटकथा लिखने पधारो फिर से भूमि हे हरी।
द्रौपदी रोती दिखेगी
अब हरेक दरबार में।
रोके कहती मेरी लज्जा
अब बचाओ हे हरी…
पटकथा लिखने पधारो फिर से भूमि हे हरी।
हां दिखा पग पग मुझे
कौरव के मन संकीर्णता
हो सके वध कर्ण का
सूरज डूबाओ हे हरी..
पटकथा लिखने पधारो फिर से भूमि हे हरी।
धंस रही है ये धरा
और गिर रहा अंबर यहां
कल के युग में कल्कि बनके
अब पधारो हे हरी…
पटकथा लिखने पधारो फिर से भूमि हे हरी।
दीपक झा रुद्रा