पछतावा।
एक आतंकवादी फटा,
इस तरह फटा,
कुछ नहीं बचा,
तो सुपुर्दे ख़ाक होने का सवाल ही नहीं उठता था,
न जमीन का था न जन्नत का,
यहां से वहां प्रेतात्मा बनकर भटकता था,
एक दिन जिस जगह फटा था,
वहां गया,
वहां का नजारा देखकर,
उसका मुंह खुला रह गया,
वह जगह पहले की ही तरह गुलज़ार थी,
लोगों की भीड़ बेशुमार थी,
सब मौज मजा कर रहे थे,
आनंदित थे हँस रहे थे,
उसे लगा की वह बेकार ही फटा,
न हूरें मिलीं , न शराब की नदियां मिलीं,
उसके अपने लोगों ने उसको ठगा,
(रुकिए कहानी तो अब शुरू हो रही है)
तभी उसे भीड़ में अपनी लड़की दिखी,
उसका दिल धड़का, तड़पा,
पर न तो उसे छू सकता था ,
और न उसे बता सकता था,
सोच में ही था तभी उसने देखा,
उसकी लड़की नुमाइश का सामान थी,
जिस्म के बाज़ार में इक हसीन दुकान थी,
लोग उससे फुसफुसा कर बात कर रहे थे,
मोल भाव कर रहे थे,
ग्राहकों में एक आदमी वह भी था,
जिसके समझाने बुझाने पर वह फटा था,
उसने परिवार को सम्हालेना का वादा किया था,
पर वह अब उसकी लड़की का सौदा,
करने में जुटा था,
वह समझ गया की वह बेवकूफ बन गया है,
उसको इस्तेमाल करने वालों में,
न कोई पारसा है ,
न ही उनमें कोई हया है,
वह अपनी लड़की को बिकते देख न सका,
तुरंत वहां से दफा हो गया।
Kumar Kalhans