पचड़ों में पड़ना ही पड़ता है (गीतिका)
पचड़ों में पड़ना ही पड़ता है (गीतिका)
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(1)
सौ – सौ पचड़े हैं ,पचड़ों में पड़ना ही पड़ता है
जीवन है कुरुक्षेत्र , युद्ध हर लड़ना ही पड़ता है
(2)
बात ठीक है रहो कमलवत ,जल की बूँद न ठहरे
मगर जगत् की कीचड़ में पड़, सड़ना ही पड़ता है
(3)
आरोहों – अवरोहों को ही तो जीवन कहते हैं
कभी मुलायम कभी प्रश्न पर ,अड़ना ही पड़ता है
(4)
बड़े – बड़े जो हुए सूरमा , मुखर रहे जीवन भर
कभी फ्रेम में फोटो बनकर ,जड़ना ही पड़ता है
(5)
कितना सुंदर हो चटकीला, रंगों से भी शोभित
मगर फूल को एक दिवस तो ,झड़ना ही पड़ता है
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451