पग-पग
एक प्रयास..
हम तो शीशे से बिखर जाएंगे
तुम न आए तो सिहर जाएंगे
फूल और शूल का रिश्ता यही
हर हाल में हम निखर जाएंगे।।
उदास रातों को आवाज दे दो
कोई सरगम कोई साज दे दो
किया जो वादा आएंगे एक दिन
इसी हसरत को परवाज दे दो।।
मैं तो कृष्ण बन सोचता रहा
मन में वृंदावन खोजता रहा
सुन लोगे बांसुरी तुम तो मेरी
यही प्रेम मंत्र मैं बोलता रहा।
प्रेम से प्रेम की बात होने दो
प्रीत मन की बरसात होने दो
बरसों से मेरे यार सोए नहीं
लोरियों की सौगात होने दो।।
पग-पग मैंने प्यार पढ़ा
आखर ढाई न पढ़ पाया
बहुत रची परिभाषा मैंने
बस, प्रेम न समझ पाया।