पगडंडी डण्डी चलकर के…
फ़िर से गिर कर उठ जाऊ जो, अब ऐसी मुझमें दरकार कहा।
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।।
सुषमा ने उस मुख की तेरे , आभा मुझपर फैलाई थी
पाकर तुझको खुश था मैं बस, अश्कों से आंख चुराई थी।
अब खोकर के ऐसा लगता है, छूटा मेरा संसार कहा
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां ।।
सोचा था तुझसे मिलकर के खुशियो का समाँ छा जाएगा
नीरस मेरे इस जीवन में संगीत मधुर सा गाएगा।
पर फिर से वही उद्घोष करे, वो पायल की झंकार कहा
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।।
व्यथित ह्रदय राग करे कि क्यों न साथ तेरा पाया
ज्वलित दीप्ति गायब हो गई, चारो ओर तिमिर छाया।
अब फिर से जो रौशन कर दे , वो दीपशिखा अवतार कहा
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।।
विचलित मन के अंदर बस भाव वही अब चलता है
ना होना तेरा जीवन में ये सोच मेरा दिल जलता है।
विचलित दिल को बहला दे, अब ऐसा वो दिलदार कहा
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।।
समझाता इस पथ पर आने से, न ऐसी कोई शाला थी
मद तेरे रूप उर्वशी के आगे , फीकी प्यालों की हाला थी।
मद फिर से ऐसी चढ़ जाए, वो मधु जैसी रसधार कहा
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।।
गठबंधन सा था प्रेम मेरा, गिर जाने का डर गया नहीं
पकड़ा छोड़ा छोड़ा पकड़ा, असमंजस का दौर नया नहीं।
मिल जाए पूर्ण समर्थन दिल को, ऐसी प्रेमी सरकार कहा
पगडंडी डण्डी चलकर के, आ पहुंचा हूं इस पार यहां।।