“पकौड़ियों की फ़रमाइश” —(हास्य रचना)
सालो दिहिस लगाइ, पकौड़िन, प्रातहिँ रट्टा,
कचरि गए हम आज, ढोइ बेसन कै कट्टा।
दुबरो हमरो गात, लगति बहु हट्टाकट्टा,
पसरो सोफा माहिँ, लगावहुँ एक रपट्टा।
तेल-गैस सब महँग, लेउँ केहि भाँति इकट्ठा,
कर्जा बढ़्यो हमार, लगत इज्ज्त पै बट्टा।
पाहुन आवत देखि, जाउँ कित, खेलत सट्टा,
देखि महाजन, दौड़, लगावत हौँ सरपट्टा।
कहुँ साड़ी, सलवार सूट, कहुँ माँगि दुपट्टा,
बेतन मिलतहिँँ छीनि, घरैतिन मारि झपट्टा।
दबी ढकी कछु नाहिं, उठि गए सिगरे फट्टा,
झाँकि परौसिन देखि, लगावै जी भर ठठ्ठा।
“आशा” बरनि न जाइ, पड़े हाथन महँ ढठ्ठा,
नयनन नीर बहाइ, पीसि चटनी सिलबट्टा..!
पाहुन # अतिथि, guest