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11 Apr 2022 · 4 min read

पंडित मदन मोहन व्यास की कुंडलियों में हास्य का पुट

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पंडित मदन मोहन व्यास की कुंडलियों में हास्य का पुट**

पंडित मदन मोहन व्यास( 5 दिसंबर 1919 – 23 मई1983) मुरादाबाद के प्रमुख कवि रहे हैं । पारकर इंटर कॉलेज ,मुरादाबाद में आप हिंदी के अध्यापक रहे । विद्यार्थियों में आपका काफी सम्मान था ।
आपकी कुछ कुंडलियाँ मेरे देखने में आईं और मन प्रसन्न हो गया । आप में हास्य का रस बिखेरने की प्रभावशाली क्षमता थी ।श्रोताओं और पाठकों को मनोविनोद के साथ-साथ कुछ चुभती हुई सीख दे जाना यह आपकी कुंडलियों की विशेषता रही।
आपकी एक कुंडलिया संसार में धनवानों की तथाकथित श्रेष्ठता की पोल खोलने में समर्थ है । कवि ने समाज को नजदीक से देखा है और विसंगतियों पर उसकी कलम बहुत अच्छी तरह से चली है। कुंडलिया इस प्रकार है :-
पैसा जिसके पास में, वह परमादरणीय
कोलतार-सा कृष्ण भी, कहलाता कमनीय
कहलाता कमनीय ,गधा भी घोड़ा होता
कुल कलंक को कंचन की गंगा में धोता
कहे व्यास कवि काला अक्षर भैंसा जैसा
फिर भी उसे बना देता है पंडित पैसा
इसमें संदेह नहीं है कि उपरोक्त कुंडलिया में कवि के भीतर जो व्यंग्य चेतना उपस्थित है, वह बहुत ऊंचे दर्जे की है।
(अक्टूबर 1973 प्रभायन पत्रिका, मुरादाबाद )
इसी पत्रिका के अंक में धोती के गुणों को पतलून से श्रेष्ठ बताया गया है । यह वह युग था जब पतलून धीरे-धीरे अपना आधिपत्य स्थापित करती जा रही थी। कवि ने कुंडलिया छंद के माध्यम से अपनी चेतना को इन शब्दों में व्यक्त किया :-
धोती में गुण बहुत हैं ,थोथी है पतलून
नैतिकता का लबादा ओढ़कर अथवा यूं कहिए कि अच्छी-अच्छी बातें करके लोग समाज में विकृत मानसिकता के साथ जी रहे हैं । ऐसे लोगों के विरुद्ध कवि की निम्नलिखित कुंडलिया बहुत ठीक ही सामने आई है । 27 जून 1971 “प्रदेश पत्रिका”, मुरादाबाद में कुंडलिया की प्रथम पंक्ति इस प्रकार है :-
राम नाम की आड़ में ,छल बल अत्याचार
एक अन्य कुंडलिया में कवि ने शब्दों से जो चमत्कार प्रकट किया है, वह देखते ही बनता है । कुंडलिया इस प्रकार है :-
नर को तकती नर तकी ,जमा रही थी रंग
सधा- गधा नगमा बजे ,धिक धिक ध्रिकिट मृदंग
( 1973 प्रभायन पत्रिका मुरादाबाद )
इसमें नर द्वारा नर्तकी को तकने तथा नर्तकी द्वारा नर को तकने अर्थात देखने को नर और तकी इस संधि विच्छेद के साथ प्रस्तुत करने में कवि ने जो वाक् चातुर्य का प्रयोग किया है ,वह अद्भुत है ।
इस प्रकार कुंडलिया लेखन के द्वारा कवि ने साहित्य में सुंदर योगदान दिया है। कवि की दृष्टि प्रवाह के साथ ही कुंडलिया लेखन में इस प्रकार से लगी रही है कि छंद को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करने में तो प्रवाह में कमी नहीं आती है किंतु कुंडलिया के विभिन्न चरणों के निर्वहन तथा मात्राओं आदि की अनदेखी हो गई है । कुंडलिया छंद का आरंभ जिस शब्द से हुआ है ,कवि ने उसी शब्द से कुंडलिया समाप्त की है । यह एक विशेष चातुर्य होता है ,जिसका निर्वहन हर कवि के लिए करना कठिन हो जाता है। व्यास जी ने यह कर दिखाया है । कुल मिलाकर व्यास जी की कुंडलियां आज भी पढ़कर मन को गुदगुदाती हैं और पूछती हैं कि बताओ आधी सदी बीत गई ,क्या परिदृश्य कुछ बदला है ?
इस तरह भाव और विचार को व्यापक दृष्टि से रखकर साहित्य – पटल पर अपनी प्रतिभा को उजागर करने वाले श्रेष्ठ कवि पंडित मदन मोहन व्यास जी को कोटि कोटि प्रणाम।।
★★★★★★★★★★★★★★★
छोटे भाई को चालीस साल बाद भी कुंडलियां कंठस्थ रहीं
★★★★★★★★★★★★★★★

“साहित्यिक मुरादाबाद” व्हाट्सएप समूह के माध्यम से पंडित मदन मोहन व्यास जी की रचनाधर्मिता का स्मरण करने के लिए एडमिन महोदय डॉक्टर मनोज रस्तोगी को साधुवाद। जब आपने 9 – 10 अप्रैल 2021 को व्हाट्सएप समूह पर मदन मोहन व्यास जी से संबंधित साहित्यिक सामग्री चर्चा के लिए प्रस्तुत की, तब उसी दौरान मदन मोहन जी के छोटे भाई श्री बृज गोपाल व्यास जी की एक वीडियो उनके पुत्र श्री राजीव व्यास जी ने रिकॉर्ड करके समूह में भेजी। इसमें बृज गोपाल जी अपने भाई मदन मोहन जी द्वारा लिखी गई कुंडलियों को याद कर करके सुनाते जा रहे हैं और स्वयं भी आनंद में डूबते हैं तथा श्रोताओं को भी हास्य के रस में सराबोर कर देते हैं। 40 वर्ष के बाद भी किसी को अपने भाई द्वारा लिखी हुई कुंडलियां स्मरण रहें, यह एक चमत्कार ही कहा जाएगा । अपनी लिखी हुई कुंडलियां तक तो किसी कवि को याद नहीं रहतीं। लेकिन निश्चय ही ब्रज गोपाल जी ने मनोयोग से यह कुंडलियां अपने भाई से सुनी होंगी। भाई ने सुनाई होंगी । पूरे उत्साह और उमंग के साथ इन पर बार-बार चिंतन मनन होता रहा होगा और यह सांसो में बस गई होंगी। तभी तो याद आती गईं। और ब्रज गोपाल जी कुंडलियों को सुनाते गए। कुंडलियां सुनाते समय आपका हाव-भाव देखते ही बनता था। क्या उत्साह था ! भाई का भाई के प्रति ऐसा प्रेम और अपनत्व तथा भाई की साहित्यिक रचनाओं को याद रखने का यह अद्भुत प्रसंग मेरे देखने में कहीं और नहीं आया । इस घटना से प्रेरित होकर मैंने यह कुंडलिया पंडित मदन मोहन व्यास जी के भाई पंडित ब्रज गोपाल व्यास जी की प्रशंसा में लिखी जो इस प्रकार है:-

भाई श्री ब्रज गोपाल व्यास(कुंडलिया)
———————————————–
भाई पर ऐसा चढ़ा , कुंडलिया का रंग
चार दशक बीते मगर ,यादों के हैं संग
यादों के हैं संग , याद कुंडलियाँ करते
होते स्वयं प्रसन्न ,हास्य जग में फिर भरते
कहते रवि कविराय,मदन शुभ किस्मत पाई
श्रीयुत ब्रज गोपाल ,व्यास-सम पाया भाई
डॉ मनोज रस्तोगी जी से फोन पर बातचीत के द्वारा यह ज्ञात हुआ कि ब्रज गोपाल जी संगीत के विद्वान हैं तथा दिल्ली और मुंबई की रामलीलाओं में पर्दे के पीछे रहकर रामचरितमानस का संगीतमय गान रामलीला के मध्य अनेक वर्षों तक करते रहे हैं । इस तरह वास्तव में आप भी स्वयं में एक विभूति हैं । आपको रामचरितमानस की अनेकानेक चौपाइयाँ कंठस्थ हैं। आपको भी आदर पूर्वक प्रणाम ।
——————————-
समीक्षक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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