पंछी अकेला
दूर – दूर जो उड़ा अकेला।
कृत्य क्रूर जो किया झमेला।।
सबको देख रहा जो पग में।
पंछी वही अकेला जग में।।
लगा हुआ चिंता अति मेला।
मन पंछी सम मौन अकेला।।
इधर – उधर आँखों को फेरे।
लोकलाज नित मन को घेरे।।
हुआ अकेला पंछी बोला।
छोड़ो अभिमानी का चोला।।
एक अकेला खुद से लड़ता।
मिला-जुला ही भारी पड़ता।।