पंचतत्व
धूमकेतु,धनरस,धरा,अंबर और बयार।
पंचतत्व के रूप में, ईश्वर का उपहार।।
पंचतत्व से है बना,जग के सकल पदार्थ।
भव बंधन को खोलता,परम पूण्य परमार्थ।।
पंचतत्व मिलकर बना,मनुज तूम्हारा देह।
पंचतत्व में मिल गया,इससे कैसा नेह।।
पंच तत्व में रम गया,तन के पाँचों गाँव।
मन मंदिर में ढ़ूँढ़ता,मिले कहीं तो ठाँव।।
वसुंधरा आकाश जल,पावक और समीर।
पंचतत्व का आजकल,हालत है गंभीर।।
पंचतत्व का सार ही,बना सृजन आधार।
असंतुलित हो एक भी,टूटे जीवन तार।।
पंचतत्व पावक,पवन,अवनि,अंबु, आकाश।
इससे ही पाता मनुज,पावन प्रखर प्रकाश।।
सृष्टि जनित पदार्थ का,होगा तभी वजूद।
अलग-अलग परिमाण में, पंचतत्व मौजूद।।
पंचतत्व का देह में,रहे उचित जब भाग।
रहता तन मन स्वस्थ तब, गाते सुख का राग।।
पंचतत्व को जानिये,और करें सम्मान।
इससे ही है जड़ जगत,और हमारी जान।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली