पंचतत्व की सेवा (सदविचार)
प्रकृति की सेवा ही मातृभूमि का ॠण उतारना है
पंचतत्व में विलीन शरीर और पंचतत्व की सेवा ही मातृभूमि समतुल्य है
पृथ्वी अग्नि वायु आकाश जल सब मातृभूमि ही है ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
प्रकृति की सेवा ही मातृभूमि का ॠण उतारना है
पंचतत्व में विलीन शरीर और पंचतत्व की सेवा ही मातृभूमि समतुल्य है
पृथ्वी अग्नि वायु आकाश जल सब मातृभूमि ही है ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल