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14 Jul 2019 · 1 min read

“पंचतत्व की यह काया है”

पंचतत्व की यह काया है
जीवन में सब कुछ माया है।
सब कुछ जान गया है लेकिन
फिर भी मानव भरमाया है।।
अपनी मनमानी से इसने
दूषित जल झरने कर डाले।
जोहड़ पोखर पाट दिये सब
भ्रम के सपने मन में पाले।।
नव विकास का गीत गाया है।
पंचतत्व की यह काया है।।
गंगा की पावनता दूषित,
यमुना कर दी है प्रदूषित।
वनऔर जंगल काट दिये सब
कैसे हमें बचायेगा रब ।
प्रश्न एक मन में आया है।
पंचतत्व की यह काया है ।।

खड़ा हिमालय चीख़ रहा है
संकट आता दीख रहा है।
मन में सब के एक हलचल है।
चिंतापूरित अग्रिम पल है ।
काले बादल का साया है।
पंचतत्व की यह काया है।
# अटल मुरादाबादी”#

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 346 Views
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